श्रवण कुमार उपाध्याय कहते हैं कि निसंदेह श्री मधुसूदन के मदहोश कर देने
वाले अहसास को सदियों से महसूस किया जाता है, लेकिन वर्तमान में पाश्चात्य
संस्कृति का अनुसरण किया जा रहा है, जिससे हिंदू मान्यताओं को आघात पहुंच
रहा है। अगर लोगों को प्रेम अच्छा लगता है तो उन्हें हिंदू मार्ग का अनुसरण
करना चाहिए, शर्तिया ही वे मान जाएंगे कि वास्तव में मधुसूदन के मंदिर में
प्रेम का पराग अनंत रूप से बसता है।
इतना ही नहीं तभी तो पाश्चात्य
शैली के रंग हमारी संस्कृति के आगे फीके पड़ जाते हैं। यही वजह भी है कि
पश्चिमी देशों में बसंत से होली तक हमारी संस्कति के अनुरूप जीवन में प्रेम
के पराग को जानने के प्रयास हो रहे हैं और वे अनुसरण कर रहे हैं।
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