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मैं खालिस्तान की घोषणा नहीं करूंगा, बेशक मुझे गोलियों से भून डालो : संत लौंगोवाल

I will not declare Khalistan : Sant Longowal - Amritsar News in Hindi

20 अगस्त बलिदान दिवस पर विशेष

अमृतसर (नरेंद्र शर्मा) संत हरचंद सिंह लौंगोवाल वास्तव में संत प्रवृति के थे। उनका निश्चल सरल स्वभाव, भोली-भाली नर्म-नर्म एवं बेलाग स्पष्ट बातें, मृदुवाणी, चेहरे पर तेज और हमेशा मुस्कराता मुखमंडल, लंबी अधपकी दाढ़ी सामने वाले को अनायास ही अपनी आेर आकर्षित कर लेती थी। सफेद कपड़ों में वे सचमुच दरवेश लगते थे। अकाली दल ने अक्तूबर 1982 में अपनी मांगों के समर्थन में धर्मयुद्ध मोर्चे की घोषणा की थी। उस समय संत लौंगोवाल को मोर्चा डिक्टेटर नियुक्त किया गया था।

इस धर्मयुद्ध मोर्चे के दौरान हमें संत लौंगोवाल और भिंडरावाला के पास लगभग प्रतिदिन जाना पड़ता था। क्योंकि उन दिनों समाचारों के वही दो मुख्य स्रोत थे। संत लौंगोवाल का आवास तेजा सिंह समुद्री हाल की पहली मंजिल पर था, जबकि भिंडरावाला साथ वाली इमारत गुरुनानक निवास के कमरा नं. 47 में रहा करता था। बाद में भिंडरावाला ने अकालतख्त के साथ वाले कमरे को अपना निवास बना लिया था। वह दिन में लंगर बिल्डिंग पर अपना दीवान सजाता था। चंूकि भिंडरावाला के कैम्प में मौजूद सशस्त्र लोगों के कारण माहौल कुछ तनावपूर्ण, संदिग्ध, भयभीत करने वाला और बोझिल सा होता था, इसलिए हम लोग वहां अपने काम से अधिक नहीं ठहरते थे, जबकि लौंगोवाल के यहां का वातावरण हल्का-फुल्का और खुला होता था, इसलिए हम वहां काम के बगैर भी घंटों तक बैठे संतजी से बतियाते रहते थे। उनके साथ हमारे निजी रिश्ते बन चुके थे। वे भी हमसे खुलकर बातें करते थे। यहां तक कि हम (कुछ पत्रकार) कई बार उनसे अपनी निजी बातें भी कर लिया करतेे थे। वे भी हमारे साथ हंसी-मजाक करते थे। उन दिनों बलवंत सिंह रामूवालिया भी संतजी के साथ ही होते थे। संत जी अक्सर हंस कर कहा करते थे ‘मैं तुम तीनों पत्रकारों को अकाली दल के टिकट पर चुनाव लड़वाकर एमएलए बनाऊंगा। हम उनकी बात पर हंस कर चुप हो जाते थे, क्योंकि उस माहौल और उस दौर में किसी हिंदू को अकाली दल का टिकट देने के बारे में सोचना ही अनोखी बात थी। हम भी जानते थे कि एेसा कभी संभव नहीं हो सकता, परंतु संत लौंगोवाल की यह सोच हिंदुआें के प्रति उनकी सोच को प्रदर्शित करती थी। वे हिंदू-सिख एकता के सच्चे मुद्दई थे। धर्मयुद्ध मोर्चे के दौरान कई एेसे अवसर आए थे जब केंद्र सरकार के साथ मांगों को लेकर बातचीत होती थी। उस समय कई बार तो एेसा लगता था कि केंद्र और अकालियों के मध्य समझौता होने ही वाला है। एेसे अवसरों पर जब भी हम संतजी से पूछते कि केंद्र के साथ क्या समझौता हुआ है तो वे अक्सर शरारती मुस्कान के साथ कहते थे (इंदिरा बीबी सानू अपने मोड़े ते हथ ही नहीं रखन देंदी, साड़ा हथ भी नहीं फड़दी ना ही आेह सानू कुछ भी नही देंदी)। इंदिरा गांधी हमें अपने कंधे पर हाथ नहीं रखने देती, वह हमारा हाथ भी नहीं पकड़ती है। वे हमें कुछ भी नहीं देती हैं। इतना कहकर वह जोर से हंस देते थे। उस दौर के हजारों ऐसे किस्से और अनकही रुचिकर बातें हैं, यदि मैं इन्हें कलमबद्ध करने लगूं तो अच्छी-खासी पुस्तक बन सकती है, परंतु इस छोटे से लेख में तो मुझे केवल उस महान देश भक्त एवं उम्दा इन्सान की राष्ट्रीयता का विवरण देना है, जिसके कारण आज भारत की अखंडता बरकरार है। संत लौंगोवाल हिंदू-सिख एकता राष्ट्र-भक्ति, राष्ट्र धर्म, इंसानियत, ईमानदारी और देशभक्ति की एेसी मिसाल हैं, जिन्होंने अपनी कुर्बानी देकर देश को एक और बंटवारे से बचा लिया था।
3 जून, 1984 के ब्लू-स्टार ऑपरेशन के बाद संत लौंगोवाल के साथ हमारी मुलाकात उस समय हुई थी, जब वे जेल से रिहा होने के बाद अपने गांव लौंगोवाल पहंचे थे। इस दौरान वे स्वर्ण मंदिर में मत्था टेकने भी आए थे, परंतु यह अल्प समय की मुलाकात थी। इस मुलाकात के समय उनसे कोई विशेष बात नहीं हो पाई थी। इस छोटी सी मुलाकात में उन्होंने हमें गांव आने के लिए कहा था। उसके बाद मैं और मेरा एक पत्रकार मित्र उनसे मिलने उनके गांव लौंगोवाल गए थे। उन दिनों वे गांव लौंगोवाल के बाहर वने गुरुद्वारे को अपना आवास बनाए हुए थे। मैं और मेरा पत्रकार साथी उस गुरुद्वारे में तीन दिन उनके साथ रहे। इस दौरान उनके साथ ऑपरेशन ब्लू-स्टार और जेल में उनके द्वारा गुजारे गए समय के बारे में बहुत सी बातें हुई थीं।

एक दिन शाम के समय हम गुरुद्वारे के बाहर बिछाई गई चारपाइयों पर बैठ कर बातें कर रहे थे, तभी सूट-बूट में आए एक सरदारजी ने संत लौंगोवाल को फतह बुलाई थी। संत लौंगोवाल ने भी अपने अंदाज में हाथ जोड़ कर मुस्कराते हुए उसे जवाब दिया औरचारपाई की आेर इशारा करते हुए बैठने को कहा। आंखों पर चश्मा लगाए आगंतुक लंबा-पतला अधड़ व्यक्ति था। उसने फिक्सो लगाकर दाढ़ी अच्छी तरह बांध रखी थी। उसके पैरों में नए-नए जूतेचमक रहे थे। उसका सूट साफ-सुथरा तो था, परंतु काफी पुराना लग रहा था। वैसे भी उसकी फिटिंग कुछ अजीब-सी थी। एेसा लग रहा था कि उसने सूट किसी से मांग कर पहना है। उसे देखकर पास वाली चारपाई पर बैठा मेरा दोस्त फुफसाने वाले अंदाज में मुझसे कहने लगा, यह आदमी उसे कुछ जाना-पहचाना लग रहा है। एेसा लग रहा है कि इसे पहले भी कहीं देखा है। हमारे समीप बैठे हुए संत लौंगोवाल ने भी शायद हमारी बात सुन ली थी। उन्होंने पूछ ही लिया। क्या बात है मैंने उन्हें बताया कि मेरा दोस्त कह रहा है कि यह व्यक्ति उसे जाना-पहचाना सा लग रहा है। मैंने संतजी से पूछा कि क्या वे इस आदमी को जानते हैं। उन्होंने भी नहीं में सिर हिला दिया था। अभी हमारे बीच यह गुफ्तगूं चल ही रही थी कि मेरे मित्र पत्रकार ने उस व्यक्ति से पूछ ही लिया- तुम संत भिंडरावाला के साथ नहीं होते थे? मेरे दोस्त के इस प्रश्न से संत लौंगोवाल भी चौंक गए थे। वे आश्चर्य से उस व्यक्ति की आेर देखने लगे थे। उस व्यक्ति ने हां में सिर हिलाते हुए कहा-हां मैं संत भिंडरावाला के साथ ही होता था। तभी मेरा दोस्त पुन: बोल उठा, तुम शायद उनके गनमैन थे, तुम्हारा नाम सुच्चा सिंह ही है न? अब मैं तुम्हें पहचान गया हूं। यह मत समझो कि दाढ़ी बांध लेने और सूट-बूट पहन लेने से कोई तुम्हें पहचान नहीं सकता है।

उस व्यक्ति ने मेरे दोस्त की बातों का कोई जवाब नहीं दिया और केवल मुस्कराता रहा। उसने इन सभी बातों से लापरवाह होकर संत लौंगोवाल की आेर मुखातिब होते हुए कहा कि संतजी मुझे आपसे अकेले में कोई बात करनी है। संत लौंगोवाल जोकि अब तक सहज हो चुके थे, ने उसे हमारा परिचय देते हुए कहा कि ये दोनों हमारे पत्रकार मित्र हैं। तुम्हें जो भी बात करनी है इनके सामने ही कर लो। उस समय भिंडरावाला के गनमैन ने संत लौंगोवाल को ऑपरेशन ब्लू-स्टार के समय की बहुत-सी बातें बताई थीं। उसने ही बताया था कि सेना ब्लू-स्टार के समय जो नकदी-सोना और हीरे-जवाहरात की बरामदगी दिखा रही है। वह बिल्कुल गलत है। उसने हमें नकदी-सोना और हीरे-जवाहरात के बारे में काफी कुछ बताया था। भिंडरावाला के गनमैन के जाने के बाद संत लौंगोवाल ने हमें इस समाचार को छापने का अनुरोध किया था। इसके बाद हमने इस समाचार को प्रमुखता के साथ कई समाचार पत्रों मे लांैगोवाल की आेर से प्रकाशित करवाया था। उस समय बरामदगी के इस विषय को लेकर काफी दिनों तक चर्चा होती रही थी।
उस दिन संत लौंगोवाल ने हमें ऑपरेशन ब्लू-स्टार के दौरान की जिस घटना के बारे में बताया, वह अत्यंत भयानक, रूह को कंपा देने वाली थी। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान की कुख्यात गुप्तचर एजेंसी आईएसआई ने उग्रवादी और अलगाववादी तत्वों के साथ मिलकर भारत की अखंडता को तार-तार करने की साजिश बना रखी थी। संत लौंगोवाल ने बताया कि उन्हें संदेह तो पहले से ही था परंतु उनके पास इसके पुख्ता प्रमाण नहीं थे। उन्होंने आगे वताया कि ब्लू-स्टार कार्रवाई के दौरान भिंडरावाला समर्थक ले. जरनल शवेग सिंह के कुछ सशस्त्र उग्रवादियों का एक ग्रुप उनके पास आया था। उस समय उनके पास एक वायरलैस सैट भी था। मै उस समय एसजीपीसी के अध्यक्ष जत्थेदार टोहरा के साथ उनके कमरे में बैठा था। इन अलगाववादियों का कहना था कि मैं वायरलैस सैट पर सिखों के लिए अलग देश खालिस्तान की घोषणा करूं। उनका कहना था कि इस घोषणा के शीघ्र बाद पाकिस्तान खालिस्तान को मान्यता देकर हमारी सहायता के लिए अपनी सेना भेज देगा। संत लौंगोवाल का कहना था कि मैं जानता था कि एेसा न करने पर वह हथियारबंद उग्रवादी मुझे उसी समय गोली भी मार सकते थे, परंतु सभी कुछ जानते हुए भी मैंने अपनी जान की परवाह न करते हुए एेसी घोषणा करने से इनकार कर दिया। मेरे साथ बैठे टोहरा साहब ने मेरे इनकार करने के बाद उन युवकों से कहा कि खालिस्तान की लड़ाई हमारी नहीं है। यह तो भिंडरावाला और सरकार के बीच का मामला है। इस बारे में जो भी घोषणा करनी है, वह संत भिंडरावाला को ही करनी है। हमारा इससे कोई लेना-देना नहीं है। इतना सुनने के बाद अलगाववादियों का वह ग्रुप वापस परिसर की आेर चला गया था। इन्होंने हमें डराने-धमकाने का प्रयास तो किया था, परंतु गोली इत्यादि नहीं चलाई थी। दरअसल उस समय हमारे आसपास भी काफी सख्या में हथियारबंद लोग मौजूद थे। इस कारण अलगाववादियों का यह गैंग चुपचाप वहां से चला गया। हमने उस समय पुष्टि न होने के कारण लौंगोवाल की इस बात को इतना महत्व नहीं दिया था। दरअसल उस दौर में कोई भी प्रत्यक्षदर्शी जुबान खोलने का साहस नहीं करता था। पिछले दिनों ब्लू स्टार के समय संत लौंगोवाल के साथ रहे बलवंत सिंह रामूवालिया ने एक टीवी इंटरव्यू के दौरान भी इस घटना की पुष्टि की थी। रामूवालिया का कहना था कि ब्लू-स्टार के समय जब गोलीबारी तेज हो गई थी तो संत लौंगोवाल सहित हम सभी लोग ग्राउंड फलोर पर बने टोहरा साहब के कमरे में चले गएये थे। उन्होंने वताया कि 4-5 जून की रात को शावेग सिंह और भिंडरावाला के कुछ सशस्त्र लोग संतजी के पास आए थे। ये अलगाववादी संत लौंगोवाल से खालिस्तान की घोषणा करने की मांग कर रहे थे, परंतु संतजी ने एेसा करने से साफ इनकार कर दिया था। इन अलगाववादियों ने उन्हें डराने-धमकाने का प्रयास भी किया था। उस समय टोहरा साहब ने उन्हें बुरी तरह से झिडक़ दिया था, जिसके बाद वे वापस चले गए थे।

बाद में बलवंत सिंह रामूवालिया के बयान की पुष्टि दरबार साहब के हैड ग्रंथी ज्ञानी भगवान सिंह ने भी की है। ज्ञानी भगवान सिंह वे शख्स हैं जो ब्लू-स्टार कार्रवाई के समय दरबार साहब के हैड ग्रंथी थे। जब ब्लू-स्टार आरंभ हुआ तो वे उस समय परिसर में ही उपस्थित थे। उनका कहना है कि 4 और 5 जून की रात्रि को शावेग सिंह स्वर्ण मंदिर परिसर में बनाए मोर्चो में घूम-घूम कर अपने हथियारबंद साथियों को दिशा-निर्देश दे रहा था। भिंडरावाला ने उस समय उसे अपने पास बुलाया और कहने लगे (जनरल साहब किथे गये तुहाड़े आे मददगार जिहड़े कहंदे सी कि जे दरबार साहब विच फौज दाखिल होई तां औह बार्डर खोल देन्गे। की सब कुछ खत्म होण तो बाद आेह मदद नू आनगे) ‘जरनल साहब कहां गए आपके वे लोग जो कहते थे कि दरबार साहब में सेना घुसी तो उनकी फौज पंजाब के बार्डर खोल देगी। क्या सभी कुछ खत्म होने के बाद वह हमारी मदद को आएंगे। ज्ञानी भगवान सिंह जोकि उस समय वहां मौजूद थे, का कहना था कि भिंडरावाला की बात सुनकर जरनल शावेग सिंह ने अपने हाथ में पकड़ा वायरलैस का रिसीवर भिंडरावाला के हाथ में पकड़ाते हुए कहा कि लीजिए आप खुद ही बात कर लीजिए। ज्ञानीजी का कहना है कि भिंडरावाला ने वायरलैस पर बोल रहे व्यक्ति से पूछा कि आप कौन बोल रहे हैं, दूसरी आेर से आवाज आई, मै जियाउलहक बोल रहा हूं। तब भिंडरावाला ने उससे कहा कि (तुसीं साढ़े नाल धोखा कीता है। तुंसी आखिया सी कि भारतीय फौज जद दरबार साहब च प्रवेश करेगी तां तुहाडिय़ां फौजा हमला कर देन्गीयां। पर तुसी हमला नहीं कीता।) आपने हमारे साथ धोखा किया है। आपने कहा था कि भारतीय फौज जब दरबार साहब में घुसेगी तो आपकी फौजें भारत पर आक्रमण कर देंगी, परंतु आपने हमला नहीं किया। भिंडरावाला के इस शिकवे के जवाब में दूसरी आेर से बोलने वाले तथाकथित याहिया खां नामक पाकिस्तानी ने जबाब दिया कि (धोखा असीं नहीं तुसी सानू दिता है। तुसी खालिस्तान डिकलेयर नही कीता। असीं हमला किंदा करदे तुसी अपने वादे तो मुकर गए हो। असी हम भी अपने वादे ते कायम हां। तुसीं जदो खालिस्तान डिकलेयर करोगेे साडीयां फौजां पंजाब दे बार्डर खोल देन्गीयां।)

धोखा हमने नहीं तुम लोगों ने हमें दिया है। तुम लोगों ने अभी तक खालिस्तान की घोषणा नहीं की है। हमारी फौजें हमला कैसे करतीं तुम लोग अपने वादे से मुकर गए हो, हम अभी भी अपने वादे पर कायम हैं। तुम जब भी खालिस्तान डिकलेयर करोगे हमारी फौजें हमला कर देंगी।
ज्ञानी भगवान सिंह ने बताया कि इतना सुनने के वाद भिंडरावाला ने उसे कहा कि (मैं हुणे ही खालिस्तान डिकलेयर कर देंदा हां) मंै अभी खालिस्तान की घोषणा कर देता हूं। परंतु वायरलैस पर बोलने वाले तथाकथित याहिया खां ने कहा कि आप के डिकलेयर करने से कुछ भी होने वाला नहीं है। क्योंकि आपको सिख अपना नेता नहीं मानते हैं। वह लौंगोवाल को अपना नेता मानते हैं। मोर्चा डिक्टेटर भी वही है। अगर इस समय संत लौंगोवाल खालिस्तान का एलान कर देते हैं तो हम अभी खालिस्तान को अलग देश के तौर पर मान्यता प्रदान कर देंगे और इसके साथ ही आपकी सहायता के लिए भारत पर हमला कर देंगे।

ज्ञानी भगवान सिंह ने आगे बताया कि इसके बाद जरनल शावेग सिंह और भिंडरावाला के मध्य कुछ विचार-विमर्श हुआ था। बाद में भिंडरावाला पुन: अकाल तख्त के तयखाने की आेर चला गया था। जनरल शावेग सिंह ने अपने सशस्त्र आतंकवादी युवकों को कुछ बातें समझाकर संत लौंगोवाल को खालिस्तान की घोषणा के लिए मनाने उनके निवास स्थान तेजासिंह समुद्री हाल की आेर भेज दिया था।
ज्ञानीजी का कहना है कि लगभग एक घंटे बाद शावेग सिंह अपने सशस्त्र खालिस्तानियों के साथ वापस आ गया। उसने भिंडरावाला को बताया कि लाख कोशिशें करने और डराने-धमकाने के बावजूद भी संत लौगोंवाल खालिस्तान का एलान करने को तैयार नहीं हुए। उनका कहना था कि बेशक हमें गोली मार दो परंतु मैं खालिस्तान की घोषणा किसी कीमत पर नहीं करूंगा। शावेग सिंह ने यह भी बताया कि उस समय जत्थेदार टोहरा भी संत लौंेगोवाल के साथ थे। दोनों ने ही खालिस्तान का एेलान करने से साफ इनकार कर दिया है। उनका कहना है कि यह उनकी लड़ाई नहीं है। यह भिंडरावाला और सरकार के बीच की लड़ाई है। इस बारे में जो भी घोषणा करनी है वह संत भिंडरावाला को ही करनी है। हम इस बारे में कुछ नहीं कहेंगे और ना करेंगे।

दरअसल पाकिस्तान की कुख्यात गुप्तचर संस्था आईएसआई की यह एक खतरनाक साजिश थी। इसके पीछे उनका मंतव्य बांगलादेश बनाने का बदला लेना था। पाकिस्तान शुरू से ही सिखों को भारत के विरुद्ध उकसाता आ रहा था। अकाली मोर्चे के समय उन्हें अवसर मिल गया था। उनकी योजना थी कि जैसे ही स्वर्ण मंदिर से खालिस्तान की घोषणा की जाएगी, तभी पाकिस्तान सरकार और उसके कुछ मित्र देश उसे मान्यता प्रदान कर देंगे। उसके बाद पाकिस्तान ठीक उसी प्रकार अपनी फौजें खालिस्तानियों की सहायता के लिए सीमा पर ले आएगा, जैसे कि भारत ने बांगलादेश एक्शन के समय किया था। यदि पाकिस्तान की यह योजना सिरे चढ़ जाती तो भी खालिस्तान तो इतनी जल्दी अस्तित्व में नहीं आ सकता था, परंतु विश्व मंच पर भारत के लिए एक नई सिरदर्दी उत्पन्न हो सकती थी और कश्मीर की तरह यह भी एक नासूर बन सकता था। पाकिस्तान की नजर शुरू से ही कश्मीर पर रही है। वह इसे हथियाने के लिये प्रत्येेक हथकंडा अपनाता रहा है। इस साजिश के कामयाब होने से उसके दो मकसद पूर्ण होते थे। एक तो वह कश्मीर को शेष भारत से काटने में सफल रहता और दूसरा उसका बंागलादेश का बदला पूरा हो जाता, परंतु संत लौंगोवाल की राष्ट्र भक्ति, राष्ट्र धर्म और देश के प्रति उनकी निष्ठा ने देश को एक और विघटन से बचा लिया। जिसके फलस्वरूप देश विरोधियों ने उन्हें गोलियों से शहीद कर दिया। एेसी महान और पवित्र बलिदानी आत्मा को राष्ट्र नमन करता है।

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