नरेंद्र शर्मा।
अमृतसर। मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री ने विधानसभा चुनावों में सफलता की हैट्रिक बनाने के लिए सरकार और पार्टी की पूरी ताकत झोंक दी है। इस बार उन्होंने पंथ खतरे में ,1984 के दंगे ,और सिखों के साथ भेदभाव जैसे साम्प्रदायिक मुद्दे बोलकर नहीं बल्कि बनाकर सिखों को यह एहसास दिलाने का प्रयास किया है की उनकी पार्टी ही एक मात्र उनकी संरक्षक और हितेषी है। सिख विरासती भवन ,मार्ग, यादगारें ,छोटा घल्लूघारा, एट्रेंस प्लाजालू इत्यादि प्रोजेक्ट इसके प्रमाण हैं। गौरतलब है कि अपने पिछले कार्यकाल के दौरान भी बादल ने आनन्दपुर साहिब ,बड़ा घल्लूघारा ,निशाने खालसा और विरासते खालसा बनाकर सिखों की धार्मिक भावनाओं को उद्देलित करके वोट बटोरने में सफलता हासिल की थी। इसमें कोई संदेह नहीं है की बादल पंजाब की सिख राजनीति के भीष्म पितामाह हैं और रहेंगे। क्योंकि उनका हाथ सिखों की नब्ज पर रहता है।
वह उसे टटोलना जानते हैं। वह जानते हैं की राज्य के सिखों को कब, कैसे और कहां प्रयोग करके अपना राजनीतिक हित साधा जा सकता है। जब उन्हें राज्य में कुछ राजनीतिक गर्मी की आवश्यकता होती हैं तो वह एसबाईएल, ब्लू स्टार ,1984 के दंगे और ऐसे ही कुछ नारे देकर उन्हें गर्म कर देते हैं और जब सत्ता उनके पास होती है तो शांति से उसका सुख भोगते हैं। बादल की राजनीति शुरू से ही ऐसी रही है। वह जानते हैं की सिख केंद्र और राज्य सरकारों के हाथों जितने पिटेंगे उतना ही वह अकाली दल के साथ जुड़ेंगें। अकाली दल के साथ जुड़ेंगे तो सत्ता पर उनका कब्जा होगा। यही कारण की वह कभी सिखों को पंजाबी सूबा, एसवाईएल, धर्मयुद्ध मोर्चा, सिखों के साथ भेदभाव , और कभी पंथ खतरे में कहकर बरगलाते रहें हैं। परन्तु पिछले कुछ वर्षों से(विशेषकर आतंकवाद के बाद ) भीष्म पितामाह यह अनुभव कर रहे थे की अब यह राजनीति और अधिक देर तक चलनी वाली नहीं है। क्योंकि वह देख रहे थे की यह मुद्दे अब सिखों को अधिक प्रभावित नहीं करते हैं। वैसे भी इन मुद्दों को बार -बार उठाकर वह राष्ट्रिय क्षितिज पर अकेले से पड़ते जा रहे थे।
यहां तक की उनकी गठबंधन पार्टी भाजपा भी इन मुद्दों पर उसका साथ नहीं देती थी। इन सभी बातों को देखते हुए बादल साहब ने इन मुद्दों को सिखों के दिलों तक पहुंचने का यह रास्ता चुना। पिछले कार्यकाल के दौरान उन्होंने इसे परीक्षण के तौर पर प्रयोग करके देखा था। चुनावों में जिसके अच्छे परिणाम सामने आये थे। उन्हीं दूसरी बार सत्ता में आने के लिए इन सिख यादगारों ,और सिख विरासत जैसे कार्यों से काफी सहायता मिली थी। सिखों ने इसे पसन्द किया था। बादल साहब समझ गए थे की इस तरीके से भी सिखों के दिलों में जगह बनाई जा सकती है और उन्हें अपने साथ जोड़ा जा सकता है।
यही कारण है की दूसरी बार सत्ता में आने के बाद बादल साहब ने इसे पूरी तरह अपना लिया। पिछले पांच वर्षों के दौरान उन्होंने पूरा ध्यान इसी और दिया और सिख विरासत से जुडी कई यादगारें ,भवन ,किलेद्धार और युद्ध स्मारक बनवा डाले। बादल साहब को पूरा विश्वास है की यादगार और विरासत मार्ग उन्हें सत्ता तक पहुंचने में सहायता करेंगे।
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