उदयपुर। राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के संघटक साहित्य संस्थान के तीन दिवसीय हीरक जयंति का समापन बुधवार को हुआ। आयोजन सचिव प्रो. जीवनसिंह खरकवाल ने बताया कि समारोह के तीसरे दिन समानान्तर सत्रों में भाषा व तकनीक व उदगम से सम्बंधित 35 शोध पत्रों का वाचन किया गया। शोध पत्र में पारम्परिक खेती, जडी बुटि ज्ञान, पारम्परिक धातु विज्ञान पर केन्द्रित था। संगोष्ठी के द्वितिय चरण में खुली चर्चा में धरोहर के विभिन्न पहलुओं के संरक्षण पर चर्चा में धरोहर को कैसे बचाया जाए, सांस्कृतिक विरासतों को संग्राहलयों में क्यो केन्द्रित कर दिया गया तथा विरासत संरक्षण में सरकार के साथ साथ सामुहिक जनभागीदारी के विचार सामन आए।
इसमें डॉ. ओसी हांडा, प्रो. शीला मिश्रा, प्रो. बी मोहंती, राव गणपत सिंह चीतलवाना, डॉ. कुल शेखर व्यास ने अपने विचार व्यक्त किए। संचालन डॉ. कुलशेखर व्यास ने किया । कार्यक्रम में 173 शोध पत्रों का वाचन किया गया। समारोह के समापन समारोह के मुख्य अतिथि अन्तर्राष्ट्रीय पुरातत्वविद् प्रो. शीला मिश्रा ने कहा कि भाषा व तकनीक का उद्गम संभवतया तब हुआ जब मनुष्य ने सवाना प्रदेशों से उतर कर समूह में रहना प्रारंभ किया तथा तेज भागने वाले जानवरों का शिकार बनाना था। ऐसी पुरा जलवायुविदो व शास्त्रियों की धारणा है कि भाषा एवं तकनीक के उद्गम में जलवायु परिवर्तन का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि देश में कही भी भाषा एवं संस्कृति का मुकाबला नहीं है। हमारे देश में विरासत ही है, जो हमारी पहचान बनी हुई है। हमारे संयुक्त परिवार भी इसी श्रेणी में आते है। विरासत के साथ छेडछाड एवं बदलाव के भयंकर परिणाम आ सकते है अत: इनका संरक्षण किया जाना अतिआवश्यक है। कुल प्रमुख भंवरलाल गुर्जर ने कहा कि बिता हुआ कल वापस नहीं आ सकता लेकिन अतिथि के पन्नों को हमारी विरासत के रूप में पुस्तकों एवं ईमारतों के रूप में संजो कर रख सकते है। किसी भी देश की विरासत एवं इतिहास उस देश की नींव का कार्य करती है। इस कारण जरूरी हो जाता है कि इनका संरक्षण किया जाए।
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