जोधपुर। द्वापर युग में जेल की सलाखें खुलीं तब श्रीकृष्ण के आगमन से खुशी मिली। ठीक ऐसे ही जोधपुर की जेल के द्वार पर भी वो लोग खुशियों का इंतजार करते है जिनका कोई अपना अंदर बंद होता है। यहां जेल के द्वार पर कानूनी रूप से अंदर गए लोगों का इंतजार होता है। खास खबर डॉट कॉम ने उन लोगों के साथ वक्त बिताया जो हर एक मिनट में जेल के अंदर झांक कर सुख की आहट की राह देखते हैं। इन सब के बीच इस बात का भी जिक्र मिला कि पुलिस इतनी बदनाम क्यों है। नाम नहीं छापने की शर्त पर इन लोगों ने बताया कि क्या बताएं समाज में मुंह काला हो गया। मेरा बेटा निर्दोष है, उसका गुनाह सिर्फ इतना रहा कि उसने सच्चाई का साथ दिया। थानेदार ने 6 महीने से दबाव बना रखा था कि एक व्यक्ति का नाम ले ले, उसकी कोर्ट में पहचान कर ले, तुम लोग फ्री हो जाओगे। मेरे बेटे को मैंने कहा कि सत्य ही शिव है बेटा, झूठा किसी को मत फंसाना। बस, इसी से गुस्साए थानेदार ने मेरे बेटे को भी धाराएं लगाकर जालसाज बना दिया। वहीं खड़ा दूसरा व्यक्ति बोला इन्हीं थानेदार ने तो पुलिस थाने में दादागीरी जमा रखी है। नाम मत छापना, नहीं तो ये लोग मुझे भी झूठा फंसा देंगे। मेरे दोस्त पर गलतफहमी की वजह से मामला दर्ज हो हुआ, जिसमें पोक्सो लगा दिया। बाद में दोनों परिवारों ने राजीनामा कर लिया। थानेदार ने गुस्सा होकर हमारी फाइल फेंक दी और बोला कि राजीनामा कैसे कर सकते हो। फिर बड़ी रकम की घूस ली तब जाकर आज मेरा दोस्त बाहर आ रहा है । ये दो नहीं ज्यादातर मामलों में पुलिस की शिकायत मिली और बताया गया कि कोर्ट में मामलों की संख्या बढ़ाने में पुलिस का बड़ा किरदार है। इसके बाद देर रात जब जेल से लोगों के बाहर आने का सिलसिला शुरू हुआ तब किसी बुजुर्ग बाप की आंखों से पानी का झरना फूट पड़ा, तब लगा कि एक गुनहगार के लिए 5 बरस की बिटिया सहित 50 लोगों का जमावड़ा क्या साबित कर जाता है। पुलिस थाने से शुरू होने वाला खेल जेल तक भी जारी है और छापेमारी में यह कई बार जाहिर हो चुका है।
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