असगर नकी,अमेठी। ये जिला गांधी-नेहरु परिवार से जुड़े होने के नाते प्रदेश समेत देश और विदेश में शिखर पर रहता है।ऐसे में तमाम सियासी तकरारों के बीच हर आंख इस जिले पर लगी होती है। बावजूद इसके सियासत के मैदान में अव्वल अमेठी विकास के नाम पर फिसड्डी साबित हुआ है।
कल और आज विकास के लिए आंसू बहाती अमेठी
अमेठी अपने विकास के लिए कल भी आंसू बहाती रही और आज भी।आजादी के पहले अमेठी एक रियासत थी। इस रियासत ने देश और प्रदेश में अपनी अलग पहचान स्थापित कर रखा था। देश के आजादी के पहले और आजादी के बाद अमेठी रियासत हमेशा सुर्खियों में रही है। आजादी के पहले अमेठी रियासत ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा लिया था। आजादी के बाद पण्डित जवाहर लाल नेहरू रियासत के काफी करीब रहे हैं।
इस तरह है नेहरु परिवार से जुड़ाव
नेहरू ने अमेठी रियासत से ही वकालत की शुरुआत की थी। तो 1977 में कांग्रेस के तेज तर्रार नेता संजय गांधी को लाने का श्रेय भी इसी परिवार को जाता है । 1977 में संजय गांधी चुनाव हार गए। संजय गांधी के बाद मेनिका गांधी परिवार से बगावत कर यहां से चुनाव लड़ी। उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा। फिर राजीव गांधी ने अपना क्षेत्र अमेठी बनाया। उसके बाद अमेठी राजीव गांधी के बचपन के दोस्त कैप्टन सतीश शर्मा का क्षेत्र रहा। जो अब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी का क्षेत्र है, लेकिन अमेठी विकास का बाट जोहती रही। विकास की बात करें तो क्षेत्र की स्थित वैसी की वैसी है।
किसानों की अमेठी में हो रही अनदेखी
उत्तर प्रदेश अमेठी में विकास का रथ बहुत वर्षों से रूका पड़ा है देश की राजनीति में ‘राजनीति शिरोमणि’ और सूफी संतों की धरती अमेठी कृषि के मामले में भी धनाढ्य है। इसके बावजूद यहां खेतों से अमूमन दो तीन ही फसलें ली जाती हैं रंजीतपुर निवासी किसान भगवानदीन मिश्र कि आज भी अमेठी के किसानों को समय पर खाद-पानी नहीं मिलता और फसल जब तैयार होती है तो उसका उचित मूल्य नहीं मिल पाता गेहूं और धान के खरीद केन्द्र खोले जरूर जाते हैं लेकिन वहां किसानों की उपज नहीं खरीदी जाती बल्कि बिचौलिये किसानों से औने-पौने दाम पर उपज खरीद कर सरकारी न्यूनतम मूल्य प्राप्त कर लेते हैं। बड़े किसानों के सामने उतनी समस्या नहीं होती है जितनी लघु सीमांत किसानों को क्योंकि बड़े किसानों के पास अपने संसाधन होते हैं और दैवी आपदा से यदि उनकी एक फसल बर्बाद हो गयी तो कोई बड़ा झटका नहीं लगता लेकिन जिसके पास थोड़ी जमीन है और उसमें अच्छी फसल उगाने के लिए उसने कर्ज लेकर खाद डाली, सिंचाई के पैसे दिये और वही फसल सूख गयी अथवा बारिश-ओलों की भेंट चढ़ गयी तो वह किसान तो पूरी तरह बर्बाद ही हो जाता है। ऐसे ही किसान कभी-कभी परेशान होकर आत्महत्या तक कर लेते हैं सरकार यदि ऐसे किसानों के बारे में सहानुभूति रखे तो उनका कष्ट कुछ कम किया जा सकता है।
पशुपालन में भी पीछे रही अमेठी
कृषि के साथ ही पशुपालन और दुग्ध विकास को बढ़ावा देने की बात भी गांवों के विकास के लिए जरूरी है पहले गांवों में दिन ढलने के समय चारागाहों से लौटती गाएं और भैंसें एक मनमोहक दृश्य उपस्थित करती थीं अब गांवों में पशुओं की संख्या सीमित हो गयी है। उत्तर प्रदेश में पशुधन की संख्या में अभूत पूर्व गिरावट आयी है इसका एक कारण पशुओं की अवैध तस्करी भी है ।स्वास्थ्य [# अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे]
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