चंद्रिल
कुलश्रेष्ठ, हाथरस। ग्लास बीड्स बनाना सबसे पुरानी प्रौद्योगिकी व मानव
कला है। कांच के मोती आमतौर पर कांच हेरफेर करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
जैसे- घाव मोती, तैयार मोती, और ढाला मोती। कांच के मोती उद्योग के लगभग सभी
क्षेत्रों में एक निर्णायक भूमिका निभाते हैं। अलग-अलग तरह के मोती पुरे देश
व दुनिया में प्रसिद्ध है। [ यहां कब्र से आती है आवाज, ‘जिंदा हूं बाहर निकालो’ ] [ अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे]
वहीं
हाथरस के पुरदिलनगर का नाम देश ही नहीं अपितु पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। पुरदिलनगर
श्रृंगार नगर के रूप में भी जाना जाता है। पुरदिलनगर के कांच का सामान खासतौर पर
मूंगा मोती (ग्लास बिड्स) पूरी दुनिया में जाना जाता है। 14 वीं शताब्दी
में तैमूर लंग भारत पर हमला करने के बाद लौट रहा था। उसके कुछ सैनिक हेंडीक्राफ्ट
के काम में दिलचस्पी रखते थे, उसने उन्हें सलाह दी कि वह भारत में रहकर हेंडीक्राफ्ट
का काम करें। उनमे से कुछ सैनिक भारत में रह गए। उन सेनिको ने सिकंदराराऊ के
सम्राट से कांच का काम करने के लिए जगह मांगी तो सम्राट ने उन्हें सिकंदराराऊ से 4
किलोमीटर दूर जगह दे दी जोकि अब यूपी के हाथरस जिले के सिकंदराराऊ तहसील
का क़स्बा पुरदिलनगर के नाम से जाना जाता है। इसी तरह सभी कांच की चूड़ी के निर्माता
जो मुस्लिम समुदाय के थे वहां बस गए और पुरदिलनगर में कांच का काम शुरू कर दिया।
सदियों
से पुरदिलनगर का मोती देश के रूप में जाना जाता है जो दुनिया में प्रसिद्ध है।
लेकिन अब इस सदियों पुराने काम को सरकारी मदद की जरूरत है। मोती कारोबार
के लिए आगे भी पुरदिलनगर का नाम रहे और ये उद्योग दम न तोड़े इसके लिए सरकार
को आगे आने की जरुरत है।
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