उदयपुर । दिपावली के साथ साथ गावों में जुडी हुई कुछ छोटी बड़ी ऐसी परंपरा है जो आज भी लोग सन्जोये हुए हैं। कुछ ऐसी ही परंमपरा जिले के निकटवर्ती रामा गांव में दिपावली से पन्द्रह दिन पहले शुरू हो जाती है जो दिपावली के बाद खेखरे के दिन सम्पूर्ण होती है। ग्राम वासी गोपाल डांगी ने बताया कि जिसमें बच्चे शाम को एक छोटे मटके के छोटे छोटे छेद करके उसमें दिपक लगा कर घर घर जाते हैं ओर मक्का की अच्छी फसल पकने व पशुओ के स्वास्थ्य व गांव की शूख शान्ती व दिपावली के इस पावन पर्व के लिए घर घर जाकर अलग अलग कई प्रकार के गीत गाते व नाचते है व दिपावली के इस पावन पर्व का इंतजार करते हैं। जिन्हें गांव में इसे हिरणी गाना कहा जाता है हिरण गाने के बाद घर घर के लोग गाने वालों को मक्की व तेल देते हैं जिससे तेल को माता जी के दिपक लगाते हैं व मक्की को बेच कर परसाद लाते हैं व प्रसाद को सभी में वितरण किया जाता है। जिसे बच्चे बड़े उत्साह से भाग लेते हैं। यह परम्परा सदियों से चली आ रही है जिसे आज भी सन्जोये हुए हैं। डांगी ने बताया कि यह परंपरा केवल रामा में ही नहीं बल्कि आसपास ऐसे कई गांव जिसमें यह हिरणी गाने गाये जाते हैं।
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