नयी दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने टिप्पणी की है कि हिन्दू कानून के तहत शादी
एक पवित्र बंधन और एक अनुबंध नहीं है जिसमें एक दस्तावेज को अमल में लाकर
प्रवेश किया जा सकता है। अदालत ने यह टिप्पणी एक महिला की उस याचिका को
खारिज करते हुए की जिसमें उसने उसे कानूनी रूप से विवाहित पत्नी घोषित करने
से इनकार करने वाले एक आदेश को चुनौती दी थी।
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महिला ने अदालत में अर्जी दायर करके अपने कथित पति की मौत के बाद अनुकंपा
आधार पर नौकरी पर नियुक्ति की मांग की थी। उसका पति शहर के एक सरकारी
अस्पताल में सफाई कर्मचारी था। उसने चिकित्सा अधीक्षक को उसे ड्यूटी करने
की इजाजत देने के निर्देश देने की मांग की थी।
उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि
उसने जून 1990 में विवाह संबंधी दस्तावेज के जरिए इस तथ्य पर सवाल उठाए
बिना व्यक्ति से शादी की कि वह उस समय अपनी पहली पत्नी के साथ रह रहा था
जिसका मई 1994 में निधन हो गया।
न्यायमूर्ति प्रतिभा रानी ने कहा कि अपीलकर्ता महिला की दलील थी कि उसने दो
जून 1990 को एक वैवाहिक दस्तावेज और एक हलफनामे के जरिए व्यक्ति से शादी
की। उसने इस बात पर कोई सवाल नहीं किया कि दो जून 1990 को व्यक्ति की पत्नी
उसके साथ रह रही थी और 11 मई 1994 को उसकी मृत्यु हुई।
उन्होंने कहा कि हिन्दू कानून के तहत शादी एक पवित्र बंधन पवित्र प्रतिज्ञा
है और यह कोई अनुबंध नहीं है जिसमें विवाह संबंधी किसी दस्तावेज पर अमल के
जरिए प्रवेश किया जा सकता है। दो जून 1990 को व्यक्ति की पत्नी जीवित थी।
न्यायालय ने कहा कि निचली अदालत ने सही कहा है कि महिला कथित शादी के आधार
पर व्यक्ति की वैध विवाहित पत्नी की हैसियत का दावा नहीं कर सकती है और
उसके आदेश को अवैध नहीं ठहराया जा सकता है।
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