कुल्लू(धर्मचंद यादव)। हिमाचल प्रदेश के कबायली जिला लाहुल-स्पीति में अब मनरेगा के अंतर्गत औषधीय गुणों से भरपूर छरमा तैयार किया जायेगा। ताकि देश भर की विभिन्न कम्पनियों की छरमा की मांग को पूरा किया जा सके। जिसके लिये तय हुआ है कि किसान और बागवान अब छरमा के पौधों को मनरेगा के तहत रोप सकेंगे। उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश के कबायली जिला लाहुल-स्पीति में तैयार होने वाले औषधीय पौधे छरमा की देश के औषधीय बाजार में लगातार मांग बढती जा रही है और अभी लाहुल में छरमा की जो पौध तैयार हो रही है उससे यह मांग पूरी नहीं हो पा रही है। इसलिये इस मांग को पूरा करने के लिये नई योजना तैयार की गई है जिसके तहत छरमा के बगीचे मनरेगा में तैयार किये जायेंगे। [@ यहां बहन सेहरा बांध, ब्याह कर लाती है भाभी] [@ अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे]
इस योजना को मुर्त रूप देने के लिए वनए बागवानी, कृषि विभाग व कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के विशेषज्ञों और अधिकारियों ने पिछले दिनों एक बैठक करके इस पर गहन चिंतन किया। जिसमें इसकी रूपरेखा तैयार की गई है और महत्वकांक्षी योजना मनरेगा के तहत छरमा के बागान तैयार करने का फैसला लिया है। जिसके तहत लाहुल-स्पीति में एक साल में सौ हैक्टेयर भूमि पर तीन लाख छरमा के पौधे लगाने का लक्ष्य तय किया गया है। इस योजना से लाहुल-स्पीति में छरमा की खेती को बढाये जाने के रास्ते खुल गये हैं। मनरेगा के तहत छरमा की खेती होने से किसानों व बागवानों की आर्थिकी भी मजबूत होगी और साथ ही वहां के बेरोजगारों को भी रोजगार के अवसर मिलेंगे।
सिवकर्थोन टास्क फोर्स ने बनाई योजना
सिवकर्थोन टास्क फोर्स ने वन, बागबानी विभाग, जिला प्रशासन व पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय के अधिकारियों और छरमा विशेषज्ञों के साथ एक बैठक कर योजना तैयार की है। जिसके मुताबिक भारतीय बाजार में बढ रही छरमा की मांग को पूरा करने के लिए लाहुल-स्पीति में छरमा के बडे पैमाने पर उत्पादन के लिये बडे स्तर पर छरमा बगीचे तैयार किए जाएंगे और यह बगीचे मनरेगा के तहत तैयार होंगे ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके और छरमा उत्पादकों को दोहरा लाभ मिले।
पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय देगा प्रशिक्षण
पालमपुर स्थित कृषि विश्वविद्यालय के छरमा विशेषज्ञ डा. विरेन्द्र सिंह का कहना है कि छरमा को वैज्ञानिक तकनीक से कैसे तैयार व लगाया जाता है इसको लेकर लाहुल-स्पीति के किसानों व बागवानों को विश्वविद्यालय की ओर से प्रशिक्षण दिया जाएगा। ताकि वह इसका भरपूर लाभ उठा सके। सिवकर्थोन सोसायटी के अध्यक्ष बीडी परशीरा का कहना है कि लाहुल-स्पीति में छरमा की खेती की अपार सम्भावनाएं है और यहां बडे स्तर पर इसकी खेती की जा सकती है। जिसके लिये योजनाबद्ध तरीके से काम किया जा रहा है।
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