शिमला। हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2023 तक क्षय रोग पर पूरी तरह से नियंत्रण कर लिया जाएगा जबकि प्रदेश के लिए यह लक्ष्य वर्ष 2025 निर्धारित किया गया है। राज्य क्षय रोग नियंत्रण गतिविधियों में देश भर में अग्रणी है और राष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश ने बेहतर प्रदर्शन किया है। यह बात स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री कौल सिंह ठाकुर ने यहां राज्य क्षय रोग प्रकोष्ठ, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन तथा भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के केन्द्रीय क्षय रोग मण्डल के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित जोनल टास्कफोर्स (उत्तरी क्षेत्र) पर दो दिवसीय कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए कही। कार्यशाला में 8 राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, दिल्ली, चण्डीगढ़, पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश के 100 से अधिक चिकित्सकों ने भाग लिया। [ श्याम मसाले ने कराई घर घर में मौजूदगी दर्ज] [ जो भी यहां आया बन गया "पत्थर"] [ अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे]
स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि प्रदेश सरकार राज्य के लोगों के स्वास्थ्य सुधार के प्रति वचनबद्ध है और इस उद्देश्य से सरकार द्वारा विभिन्न योजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैं। आज प्रदेश अनेक स्वास्थ्य मानकों में देश भर में अव्वल स्थान पर है। उन्होंने कहा विश्वभर में क्षय रोग के कुल मामलों में से एक चौथाई रोगी भारत में हैं। उन्होंने कहा कि भारत में क्षय रोग के 28 लाख मामले हैं और प्रतिवर्ष 4.8 लाख लोगों की मृत्यु इस रोग के कारण हो जाती है। उन्होंने कहा कि वर्ष 1997 तक प्रदेश में 19 मिलियन से अधिक लोगों का उपचार किया गया, जिससे 3.4 मिलियन अतिरिक्त जीवन को बचाया गया। ठाकुर ने हिमाचल प्रदेश में इस रोग की पहचान दर व उपचार की सफलता दर पर प्रसन्नता जाहिर कीए जो राष्ट्रीय स्तर से बेहतर है। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम के अन्तर्गत 1997 तक हिमाचल प्रदेश में 2 लाख के करीब क्षय रोगियों का उपचार किया गया। उन्होंने कहा कि डॉट क्षय रोग नियंत्रण में विश्व स्तर पर सबसे प्रभावी है।
उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश में संशोधित राष्ट्रीय क्षय रोग कार्यक्रम चरणवद्ध तरीके से कार्यान्वित किया जा रहा है। हमीरपुर प्रदेश का पहला जिला है, जहां 1995 में इसकी गतिविधियां आरम्भ की गई, उसके उपरान्त कांगड़ा व मण्डी में इसे 1998 में आरम्भ किया गया। उन्होंने कहा कि जनवरी 2002 तक पूरा प्रदेश इस कार्यक्रम के अधीन लाया गया। स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि प्रदेश में क्षय रोग की उपचार सेवाओं में विकेन्द्रीकरण किया गया है और 74 स्वास्थ्य खण्डों में से 72 में क्षय रोग इकाईयां स्थापित की गई हैं। उन्होंने कहा कि शेष बचे दो खण्डों में भी शीघ्र ही क्षय रोग इकाईयां क्रियाशील की जाएंगी।
उन्होंने कहा कि सभी एलोपैथिक चिकित्सा संस्थानों में क्षय रोग उपचार सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं। प्रदेश में 200 लघु उपचार केन्द्र हैं और 15 नए शीघ्र ही खोले जा रहे हैं। वर्तमान में प्रदेश में 2 डीआर टीबी केन्द्र धर्मपुर तथा टांडा में एमडीआर का उपचार कर रहे हैं और 2 अन्य केन्द्र आईजीएमसी शिमला तथा क्षेत्रीय अस्पताल मण्डी में इस वर्ष आरम्भ किए जा रहे हैं। राज्य में क्षय रोगियों के लिए टीबी की दैनिक खुराक को सफलतापूर्वक आरम्भ किया गया है और प्रदेश में इसके अधीन 868 रोगियों को लाया गया है। ठाकुर ने कहा कि प्रदेश में धर्मपुर स्थित टीबी सेनेटोरियम में मध्यवर्ती सन्दर्भ प्रयोगशाला के अतिरिक्त दो सीडीएसटी प्रयोगशालाएं आईजीएमसी शिमला तथा टांडा में क्रियाशील हैं।
उन्होंने कहा कि राज्य के विभिन्न अस्पतालों में सीबीएनएएटी की 9 मशीनें पूर्ण रूप से कार्य कर रही हैं और इस तरह की 3 और मशीनें किन्नौर, लाहौल-स्पिति व कुल्लू जिलों के लिए स्वीकृत की गई हैं। क्षय रोग नियंत्रण में मेडिकल कालेजों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है, जो इस बारे प्रशिक्षण अनुसंधान तथा परामर्श देने में सहायक होते हैं। उन्होंने मेडिकल कालेजों की इस रोग के उपचार में योगदान में कमी पर चिंता व्यक्त की। हालांकि, आरएनटीसीपी कार्यान्वयन में मेडिकल कालेजों के योगदान की उन्होंने सराहना की। भारत सरकार के क्षय रोग नियंत्रण डिविजन के अतिरिक्त उप-महानिदेशक डा. देवेश गुप्ता ने प्रदेश में क्षय रोग नियंत्रण के कार्यान्वयन पर सन्तोष व्यक्त किया, जहां 1000 रोगियों को दैनिक खुराक के अधीन लाया गया है। इसके अतिरिक्त, 40 प्रतिशत रोगी निजी अस्पतालों से उपचार ले रहे हैं।
प्रदेश में सभी चिन्हित क्षय रोगियों को गुणात्मक उपचार सुविधा प्रदान की जा रही है। एनआईटी आरडी नई दिल्ली के निदेशक डा. रोहित सरीन ने कहा कि हिमाचल प्रदेश ने क्षय रोग नियंत्रण गतिविधियों में राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है। राज्य क्षय रोग नियंत्रण अधिकारी डा. आरके बारिया ने मुख्यातिथि का स्वागत किया तथा हिप्र जोनल टास्कफार्स के अध्यक्ष डा. अशोक भारद्धाज ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया। स्वास्थ्य निदेशक डा. बलदेव ठाकुर, चिकित्सा शिक्षा निदेशक डा. अनिल चौहान, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के परामर्शदाता, विभिन्न राज्यों के जोनल टास्कफोरस अधिकारी व क्षय रोग विशेषज्ञों ने कार्यशाला में भाग लिया।
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