भोपाल। मध्य प्रदेश की राजधानी भेापाल के यादगार-ए- शाहजहांनी पार्क का हर
शनिवार को नजारा ही निराला होता है, यहां सैकड़ों की संख्या में बुजुर्ग से
लेकर नौजवान तक जमा होते हैं और अपने हक का नारा बुलंद करते हैं। बीते 29
वर्षों से यह सिलसिला अनवरत चल रहा है और यह तब तक चलने का दावा किया जाता
है जब तक उन्हें अपना हक नहीं मिल जाता या सांस चलती रहेगी। यूनियन
कार्बाइड संयंत्र से दो-तीन दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात रिसी मिथाइल आइसो
सायनाइड (मिक) गैस ने तीन हजार से ज्यादा लोगों को मौत की नींद सुला दिया
था। इसके साथ ही हजारों लोगों को तिल-तिलकर मरने को छोड़ दिया। एक तरफ
मरने वालों के परिजन हैं तो दूसरी ओर वे लोग जो मिक से मिली बीमारी से जूझ
रहे हैं।
गैस पीडि़त महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार
ने आईएएनएस को बताया, ‘‘अक्टूबर 1986 से गैस पीडि़त हर शनिवार को
यादगार-ए-शाहजहांनी पार्क में इकट्ठा होते हंै और अपना हक पाने का नारा
बुलंद करते हैं। यहां आने वाले गैस पीडि़त अपने दर्द भी एक-दूसरे के बीच
साझा करते हैं।’’
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