साल 2012 में म्यांमार में हुई सांप्रदायिक हिंसा और तनाव के बाद इसका गठन
हुआ। आईजीसी ने बताया है कि एचएवाई को संभालने और इसकी गतिविधियों से जुड़े
फैसले लेने का काम 20 वरिष्ठ सदस्यों की एक समिति करती है और ये सभी मक्का
में रह रहे हैं। एचएवाई के सदस्यों के साथ इंटरव्यू के आधार पर अपनी
रिपोर्ट में आईसीजी ने बताया है, ‘इस समिति में सभी लोग या तो म्यांमार
छोडक़र बाहर रह रहे रोहिंग्या समुदाय के मुसलमान हैं या फिर उनके पास
रोहिंग्या की विरासत है। बांग्लादेश, पाकिस्तान और शायद भारत में भी उनके
काफी अच्छे संपर्क हैं।’ बताया गया है कि इस आतंकी संगठन को सऊदी अरब से
फंडिंग मिल रही है और इसका अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों के साथ भी
संपर्क है। [@ खासखबर EXCLUSIVE: यूपी इलेक्शन में क्या गुल खिलाएगा डिजिटल वॉर ?]
भारत इस संगठन और म्यांमार के हालातों पर बारीक नजर रखेगा।
खासतौर पर इसलिए कि भारत में आतंकी वारदातों को अंजाम देने में शामिल
इंडियन मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तैयबा ने रोहिंग्या मुसलमानों के प्रति समर्थन
जताया है। इतना ही नहीं, बल्कि इंडियन मुजाहिदीन ने तो बोधगया के महाबोधि
मंदिर में 7 जुलाई 2013 को एक धमाका भी कराया था।
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