अभिषेक मिश्रा, लखनऊ। मुलायम सिंह यादव आजमगढ़ में सपा के चुनाव प्रचार के लिए
नहीं गए। जबकि उन्होंने अभी तक महज दो सीटों इटावा की जसवंत नगर में भाई शिवपाल
सिंह यादव और लखनऊ की कैंट सीट के लिए बहू अपर्णा यादव के लिए ही प्रचार किया है। सपा के मुखिया मुलायम सिंह यादव का संसदीय क्षेत्र आजमगढ़
विधान सभा चुनाव में अपने सांसद की एक झलक पाने के लिए तरस गया। पारिवारिक कलह का
दंश ऐसा रहा कि सपा मुखिया ने जो पिछले 2012 के चुनाव में जिले की दस विधान सभा क्षेत्रों में सभाएं कर
लोगों से सपा के लिए वोट देने की अपील की थी। परिणाम भी सपा के पक्ष में रहा और
जिले की दस में से 9 सीटे सपा की झोली में गयी थी।
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2017 के विधान सभा चुनाव में हालात बदल गये है और सपा मुखिया ने
प्रदेश के कुछ एक चुनावी जन- सभाओं को सम्बोधित किया लेकिन अपने संसदीय क्षेत्र
जिसे सपा का गढ़ माना जाता रहा यहां आने से परहेज किया। नेता जी ने भी मंचों से
अक्सर यह कहा कि सैफई मेरा दिल है तो धड़कन आजमगढ़। समाजवादी पार्टी के स्थापना
काल के पूर्व से रहा और यह लगाव धीरे धीरे प्रगाढ़ होता गया। पूर्व सांसद ईशदत्त
यादव आदि ने सपा के गठन में महती भूमिका निभाई और सपा की स्थापना के साथ ही जिले
के आधा दर्जन से अधिक लोग इसके शुरूआती सदस्य रहे। धीरे-धीरे सपा ने अपने अस्तित्व
को बढ़ाते हुए अपनी राजनैतिक मजबूत मौजूदगी प्रदेश में दर्ज करानी शुरू की। इस दौर
में भी जनपद ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और सपा को पूरी तरह से मजबूत करने में कोर
कसर नही छोड़ा।
स्थापना काल के बाद सपा को जिले के प्रत्येक विधान सभा क्षेत्र से
जनता ने विधायक चुन कर दिया। समाजवादी पार्टी के लिए सबसे बेहतर परिणाम जिले में 2012 के विधान सभा चुनाव में मिला जब दस में से नौ सीटों पर सपा
ने जीत हासिल की।
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