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अनेकान्त के प्रयोगधर्मी संत थे आचार्य तुलसी: साध्वी पावनप्रभा

बीकानेर। आचार्य तुलसी की मासिक पुण्यतिथि पर गंगाशहर स्थित नैतिकता का शक्तिपीठ पर आयोजित आचार्य तुलसी और अनेकान्तवाद विषय पर आयोजित संगोष्ठी पर पावन उद्बोधन में साध्वी पावनप्रभा ने कहा आचार्य तुलसी अनेकान्त के प्रयोगधर्मी थे। अनेकान्त का अर्थ है एक ही दृष्य को अनेक दृष्टियों से देखना। आचार्य तुलसी के मन में अनेकान्त का भाव नहीं होता तो वे संघ समाज को इतनी बड़ी देन नहीं दे सकते थे। उन्होंने धर्म का जो रूप दिया है वह उनकी अनेकान्त दृष्टि का ही परिणाम है। साध्वी पावनप्रभा ने कहा कि तुलसी ने उपासना की जगह आचरण को अधिक महत्व दिया। उन्होंने आचरण के लिए अणुव्रत का विचार दिया व इसके लिए पूरे देश की यात्रा की। आचार्य तुलसी ने नैतिकता को ही सच्चा धर्म बताया और व्यक्ति के नैतिक आचरण को ही उसकी धार्मिकता का दर्जा दिया। गुरुदेव तुलसी के जीवन से जुड़े अनेक प्रसंग सुनाते हुए उन्होंने कहा कि आचार्य तुलसी पूर्णतया अनेकान्तवादी थे। उन्होंने अपने जीवन में इसे सिद्ध किया। अपने जीवन काल में ही आचार्य पद को त्याग कर उन्होंने अपने अनेकान्तवादी होने का परिचय दिया। उन्होंने उपासना और आराधना के साथ ही आचरण व आस्था को महत्व देनें की सीख दी। बाड़मेर से चातुर्मास सम्पन्न कर गंगाशहर पधारीं साध्वी पावनप्रभा ने कहा कि हमने सेवा का व्रत ले रखा है और सेवा के लिए शक्ति की आवश्यकता है। आचार्य तुलसी ने सेवा पर जाने से पहले शक्ति संचय को प्रधानता दी। ऐसे सन्त दुनिया में विरले होते हैं। इससे पूर्व संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन करते हुए जैन लूणकरण छाजेड़ ने कहा कि आचार्य तुलसी अनेकान्तवादी थे इसलिए, उन्होंने अपने जीवन में आग्रह नहीं पाला। अपने विरोधी विचारधारा वालों की भी सुनते थे। आचार्य तुलसी ने अपने जीवन में संघ व देशहित में अनेक ऐसे निर्णय लिए जिससे उनकी आस्था अनेकान्तवाद में स्पष्ट परिलक्षित होती थी। साध्वीश्री आत्मयषा ने मुक्तकों के माध्यम से अपने विचार रखे। साध्वी रम्यप्रभाश्री ने तुलसी अष्टकम् प्रस्तुत किया। साध्वी प्रबोधयशाजी ने गीतिका प्रस्तुत की। धर्मेन्द्र बोथरा ने गुरुदेव तुलसी के प्रति संगीत मानवता के प्रहरी प्रस्तुत किया। संचालन जतनलाल दूगड़ ने किया।

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Web Title-Acharya Tulsi was experimental saint of Anekant: Pavanprabha
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