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दोहरी मानसिकता के समाज पर करारा तमाचा है ‘पिंक’

हिंदी फिल्मों में कोर्ट रूम ड्रामा का खास आकर्षण वकीलों की बहसबाजी होती है। दर्शक यातना और आरोप की शिकार के साथ हो जाते हैं और उसकी जीत चाहते हैं। लेखक और निर्देशक ने ‘पिंक’ में अंत तक रहस्य बनाए रखा है। हिंदी फिल्मों में यह सहज अनुमान भी चलता है कि लड़कियों के पक्ष में अमिताभ बच्चन हैं तो उनकी जीत सुनिश्चित है। इससे रहस्य का रोमांच थोड़ा कम होता है।

अमिताभ बच्चन को वकील के नए अंदाज में देख कर हम उनके अभिनय के नए पहलू से परिचित होते हैं। अमिताभ बच्चन प्रयोगों के लिए तैयार हैं। वे नई चुनौतियों के लिए नई रणनीति और शैली अपनाते हैं। उन्होंने अपने चरित्र के विकास पर ध्यान दिया है और उसी क्रम में आवाज बदलते गए हैं। अंतिम बहस में उनके तर्क आधिकारिक और दमदार हो जाते हैं। पियूष मिश्रा संयत भाव से अपने किरदार में हैं। निर्देशक ने उन्हें किरदार से छिटकने नहीं दिया है। तीनों लड़कियों में मीनल मुख्य है, इसलिए तापसी पन्नू के पास हुनर दिखाने के बेहतरीन अवसर थे। उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी है। वह असरदार हैं। इसी प्रकार कीर्ति कुल्हारी और एंड्रिया भी अपने किरदारों को मजबूती से पेश करती हैं। राजवीर की भूमिका में अंगद बेदी उसकी ऐंठ को सही ढंग से पेश करते हें। अन्य छोटी और सहयोगी भूमिकाओं में कास्टिंग डायरेक्टर जोगी ने कलाकारों का सटीक चुनाव किया है।

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Web Title-Pink attacks dual standards practiced in society
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