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निर्देशक : मोहित सूरी
कलाकार : जॉन अब्राहम, अर्जुन कपूर, तारा सुतारिया, दिशा पाटनी
पिछले कुछ समय से हिन्दी में प्रदर्शित होने वाली समस्त फिल्मों को दर्शकों द्वारा नकारा जा रहा है। फिर यह फिल्में चाहे बड़े बैनर (सम्राट पृथ्वीराज, शमशेरा) या फिर मध्यम बैनर (शाबास मिट्ठ, हिट) की रही हैं। गत सप्ताह बहुचर्चित और बहुप्रचारित फिल्म देखने के बाद महसूस हो गया था कि बॉलीवुड में कहानियों का अकाल है। यहाँ के फिल्म लेखक नया कुछ नहीं सोच पा रहे हैं। दक्षिण के लेखक निर्देशक दर्शकों के बदलते रुख को पहचानते हुए फिल्में लिख व निर्देशित कर रहे हैं, जबकि हिन्दी फिल्म उद्योग कहानियों के मामले में वीरान हो गया है। आज प्रदर्शित निर्देशक मोहित सूरी की फिल्म एक विलेन रिर्टन्स को लेकर हमें काफी उम्मीदें थी कि उनकी यह फिल्म जरूर दर्शकों को पसन्द आएगी लेकिन फिल्म देखते हुए हमने न सिर्फ अपना सिर पकड़ लिया अपितु फिल्म खत्म होने के बाद सबसे पहले सिरदर्द की गोली ली।
मोहित सूरी की फिल्म का कथानक बिगड़ैल अमीरजादे गौतम (अर्जुन कपूर) पर आधारित है तो जो एक वायरल प्रैंक का बदला लेने के लिए स्ट्रग्लर सिंगर आरवी (तारा सुतारिया) को धोखा देता है। हालांकि इसके बाद वो उसके साथ प्यार में पड़ जाता है। वहीं, भैरव (जॉन अब्राहम) और रसिका (दिशा) की इस कहानी में एंट्री होती है जो आगे की कहानी पूरी पलट कर रख देते हैं। फिल्म देखते हुए यह समझ में नहीं आता है कि आखिर दोनों नायक किस बात को लेकर एक-दूसरे से होड़ कर रहे हैं। फिल्म न सिर्फ कथानक के मामले में अपितु संवाद, गीत-संगीत, अभिनय, बैक ग्राउण्ड म्यूजिक सभी में मात खा जाती है।
फिल्म की जान सिर्फ और सिर्फ दो डायलॉग्स हैं, जिन्हें पिता-पुत्र के द्वारा बुलवाया गया है। एक भैरव के पिता (भारत दाभोलकर) बोलते हैं और फिर वही संवाद भैरव बाद में बोलता है। इसके अलावा एक और सीन है जो कहानी के बीच में आता है और यहां से लगता है कि आगे चलकर कुछ खास होने वाला है। हालांकि ऐसा कुछ होता नहीं है।
फिल्म में कई खामियां हैं जो दर्शकों को बोर करती हैं। उम्मीद के उलट इस फिल्म के संवाद काफी बोरिंग हैं और ये एक व्यंग्य की तरह लगते हैं। इसके अलावा अगर फिल्म में कोई ट्विस्ट है भी तो दर्शक उसे दूर से देखने में कामयाब हो जाता है। इसके अलावा, सबसे बड़ी कमी फिल्म की भूमिका है। जहां एक लडक़ी के दिल तक पहुंचने के लिए दूसरी लडक़ी का इस्तेमाल करना दिखाया गया है। ये काफी स्त्री विरोधी प्रतीत होता है। लगता है कि फिल्म में जॉन अब्राहम और अर्जुन कपूर एक दूसरे से होड़ लगाने में बिजी हैं कि कौन ज्यादा खराब संवाद बोलेगा। फिल्म के गाने भी कोई उत्साह नहीं भरते।
मोहित सूरी अच्छे निर्देशक हैं उन्होंने कुछ अच्छी बेहतरीन फिल्में दर्शकों को दी हैं लेकिन एक विलेन को देखकर तो ऐसा महसूस होता है कि वो अब स्त्रियों के विरोध में जा रहे हैं। जिस विषय को उन्होंने फिल्म के लिए चुना है वह पूरी तरह से गलत है। यह फिल्म दर्शकों को गलत संदेश देती है। इस फिल्म के पहले शो के बाद ही दर्शकों ने सोशल मीडिया पर इसका विरोध करना शुरू कर दिया है।
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