निर्माता: आदित्य धर, लोकेश
धर, ज्योति देशपांडे
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निर्देशक: आदित्य सुहास जम्भाले
सितारे: यामी गौतम, प्रियामणि,
अरुण गोविल, किरण करमारकर, राज जुत्शी, वैभव
आर्टिकल 370 का ट्रेलर देखने
के बाद यह स्पष्ट हो गया था यह एक ऐसे राजनीतिक फैसले पर बनी
फिल्म है जिसमें सरकार के फैसलों की महागाथा को प्रस्तुत किया गया होगा। यह सोच
गलत भी नहीं थी, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में सिनेमाई परदे पर ऐसी कई फिल्में आ
चुकी हैं जहाँ सरकार के विदेश नीति से सम्बन्धित फैसलों काे दृश्यों के द्वारा
दर्शकों के सामने रखा गया है। समस्त पूर्वानुमानों को दृष्टिगत रखते हुए फिल्म
देखी।
फिल्म देखने के बाद यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यदि राजनीतिक फैसले पर
आधारित फिल्म वाली बात को दूर रखकर इसे देखा जाए तो आर्टिकल 370 दर्शकों को बांधकर
रखने वाली फिल्म है। यह उसी तरह की फिल्म है जिस तरह की स्वयं आदित्य धर के
निर्देशन में आई फिल्म उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक थी। 'आर्टिकल 370' सरकार के एक ऐतिहासिक
फैसले, उस फैसले को
ग्राउंड पर लागू करने
वाले लोगों, फैसले के पीछे की
प्लानिंग-प्लॉटिंग और बिना किसी
को कानोंकान खबर हुए उसके
कामयाब होने का जश्न मनाती है। उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक की तरह
आर्टिकल 370 भी दर्शकों को एक और ऐतिहासिक घटना को दृश्यों के द्वारा देखने और
समझने का मौका देती है।
'आर्टिकल 370' शुरू होती है
इंटेलिजेंस ऑफिसर जूनी हकसार (यामी
गौतम) के एक मिशन
से, जिसमें उनके निशाने पर
बुरहान वानी है। जूनी
का ऑपरेशन कश्मीर में बवाल खड़ा
कर देता है, जिसके
बाद उसे दिल्ली बुला
लिया जाता है। इधर
दिल्ली में पीएमओ की
हाई रैंक ऑफिशियल राजेश्वरी
स्वामीनाथन (प्रियामणि)
कश्मीर के हालात को
लेकर एक्टिव हैं। वो सीधा
प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के
'कश्मीर विजन' को वास्तविकता के धरातल में लाने
पर काम कर रही
हैं। फिल्म में प्रधानमंत्री और
गृहमंत्री के नाम नहीं
लिए गए हैं, मगर
दोनों किरदारों को देखकर ही
दर्शक समझ जाते हैं यह लोग कौन
हैं।
राजेश्वरी अपने प्लान को
आगे बढ़ाने के लिए जूनी
को वापस कश्मीर भेजती
हैं। इस बार नई
पावर के साथ पहुंची
जूनी का मिशन है
कश्मीर में एंटी-इंडिया
गतिविधियों और लोगों को
काबू करना ताकि इधर
सरकार अपने फैसले बिना
चिंता के ले सके
और फिल्म की एकदम शुरुआत
में ही ये साफ़
हो जाता है कि
जूनी इस तरह के
काम में किसी भी
तरह ढीली नहीं पड़ने
वाली।
एक तरफ आपको जूनी
की नजर से कश्मीर
के हालात, वहां की पॉलिटिक्स
और ब्यूरोक्रेसी पर कमेंट्री मिलती
है। दूसरी तरफ, राजेश्वरी दिल्ली
की राजनीति का जायका आप
तक पहुंचाती हैं। मध्यान्तर के बाद फिल्म में प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की
एंट्री के बाद फिल्म
का माहौल ही बदल जाता
है। इसके बाद निर्देशक ने अपना पूरा फोकस
इन दो पात्रों पर रखा है और यह होना भी था, क्योंक दोनों किरदार ही ऐसे हैं।
फिल्म का पूर्वार्द्ध थोड़ा
धीमा है और एक मोमेंटम बनने में समय
लगता है।
मध्यान्तर के बाद फिल्म के कथानक पर ज्यादा ध्यान दिया
गया और इसे निर्देशक पूरी पकड़ के साथ दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया है। 'आर्टिकल 370' रियलिटी और फिक्शन के
बीच की लकीर पर
बड़ी चतुराई से चलती है।
इसका पूरा ड्रामा बड़ी कलाकारी के
साथ रचा गया है
और थ्रिलिंग तरीके से आगे बढ़ता
है। भारत के गृहमंत्री अमित
शाह की एक पार्लियामेंट
स्पीच को जिस तरह
रीक्रिएट किया गया है,
वो फिल्म के नैरेटिव में
काफी असरदार है। फिल्म के संवाद कुछ सुने हुए लगते हैं, लेकिन कई जगह पर
ऐसे संवाद भी हैं जिनकी दर्शक खुलकर तारीफ करता नजर आता है।
फिल्म का क्लाइमेक्स काफी
अच्छा है जो 30 मिनट
लंबा है। प्रभावशाली राइटिंग
के साथ शानदार स्क्रीनप्ले
है। शिवकुमार वी पैनिकल की
एडिटिंग काफी तारीफ के
काबिल है।
हालांकि आर्टिकल 370 का ज्यादातर पार्ट
वास्तविक घटनाओं से प्रेरित है,
लेकिन कोई भी क्रिएटिव
लाइबर्टीज को नजरअंदाज नहीं
कर सकता जो मेकर्स
ने कई बार ली
है जैसे यामी और
उनके साथी के बीच
ओवर ड्रामा वाला एक्शन सीक्वेंस
और जब ग्रेनेड अटैक
के दौरान यामी की एक
साथी बच जाती है।
यामी गौतम का काम
इस फिल्म में इतना दमदार
है कि 'आर्टिकल 370' को
उनके करियर की बेहतरीन अदाकारी के लिए याद किया जाएगा।
क्लोज-अप्स में उनकी आंखें
चेहरे के एक्सप्रेशन और
आवाज बेहतरीन असर करते हैं।
खासकर वो सीन जब
वह वर्दी में खड़े साथी
पुरुषों के लिए खड़ी
होती हैं। राजेश्वरी के रोल में प्रियामणि
भी बहुत दमदार हैं।
दोनों अभिनेत्रियों ने मिलकर अपनी
मेहनत से फिल्म को
खास बनाया है। यह फिल्म
आगे निर्देशकों को मोटिवेट करेगी महिलाओं के लिए ऐसे
ही मजबूत किरदार रखने के लिए।
वैभव तत्ववादी और राज जुत्शी की
परफॉरमेंस भी याद रहने
वाली है।
किरण कर्मारकर ने अपने जानदार
काम से गृह मंत्री अमित शाह के किरदार में जान फूंक दी है।
इसी तरह अरुण गोविल
ने प्रधानमंत्री के किरदार को
बेहतरीन संजीदगी के साथ पेश
किया है।
'आर्टिकल 370' के पूरे नैरेटिव
को बैकग्राउंड स्कोर से बहुत मदद
मिलती है। सिनेमेटोग्राफी, साउंड
और प्रोडक्शन के मामले में
यह एक टेक्निकली सॉलिड
फिल्म है और बहुत
असरदार तरीके से अपने नैरेटिव
को आगे बढ़ाती है।
इसलिए दर्शक के तौर पर
यह समझना महत्वपूर्ण हो जाता है
कि आखिरकार पर्दे पर दिखाई जा
रही कहानी फिक्शन है, फैक्ट नहीं।
खुद मेकर्स भी इस बात
को लेकर अतिरिक्त सतर्क
हैं और शायद इसीलिए
उन्होंने फिल्म की शुरुआत में
एक बहुत लंबा-चौड़ा
डिस्क्लेमर दिया है।
कुल मिलाकर 'आर्टिकल 370' रियलिटी के बेहद करीब
वाले फिक्शन को फैक्ट्स से
थोड़ा दूर ले जाकर
एक थ्रिलिंग तरीके से पेश करती
है। आर्टिकल 370 हमारे देश के इतिहास
के सबसे महत्वपूर्ण चैप्टर
में से एक को
हाईलाइट दिखाती है। एक प्रभावशाली
राइटिंग, सिंपल स्टोरी और जबरदस्त डायरेक्शन
के साथ अच्छा मैसेज
देती है। यही वजह
है कि 2 घंटे 40 मिनट
का लंबा रनटाइम होने
के बावजूद ये फिल्म दर्शकों
को अपने साथ जोड़ने में पूरी तरह से कामयाब होती है। बॉलीवुड में मुख्य विषय
के रूप में कश्मीर
पर बनी फिल्में बहुत
हैं, लेकिन यामी और प्रियामणि
की यह फिल्म निश्चित रूप से उनमें
से सर्वश्रेष्ठ में से एक
होगी।
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