नई दिल्ली। इस
प्रतियोगी दौर में बच्चों के ऊपर पढ़ाई, परीक्षा और इसके बाद बेहतर करने का
दबाव इतना ज्यादा है कि एकाग्र होकर पढ़ाई करना मुश्किल हो जाता है। हर
समय सबसे अच्छा करने या बेहतर परिणाम लाने की चिंता में वे कुछ भी ढंग से
कर नहीं पाते हैं। मनोचिकित्सक डॉ. अनुनीत साभरवाल कहते हैं, "एक
विद्यार्थी जब बोर्ड परीक्षा के दबाव और तनाव में आता है तो उसमें शारीरिक,
व्यावहारिक, भावनात्मक और संज्ञानात्मक परिवर्तन आ जाते हैं। इन्हें देखना
और पहचानना उसके माता-पिता और उससे जुड़े लोगों का काम है।" ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
दरअसल,
किसी भी तरह के डर या मांग के बदले में शरीर इसी तरह से प्रतिक्रिया करता
है और व्यक्ति तनाव में आ जाता है। उसके नर्वस सिस्टम से तनाव वाले
हार्मोन्स एड्रेनेलाइन और कॉर्टिसोल का स्राव होने लगता है, जो शरीर को
इमरजेंसी एक्शन लेने के लिए उकसाता है।
'अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिव
सिंड्रोम' से पीड़ित बच्चों की मदद करने वाली संस्था 'मॉम्स बिलीफ' से
जुड़ीं क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. मालविका समनानी कहती हैं, "विद्यार्थियों
में परीक्षा के तनाव का संबंध एडीएचडी से हैं। यह संबंध सकारात्मक तो कतई
नहीं है, बल्कि यह छत्तीस का आंकड़ा है। लिहाजा, इन दोनों का एक साथ होना
खतरनाक हो सकता है।"
एडीएचडी से प्रभावित बच्चों का ध्यान बहुत जल्द
भटक जाता है। इसके बावजूद उन्हें भी आम विद्यार्थियों की तरह हर चुनौती का
सामना करना होता है। जैसे- अपनी चीजें सही जगह पर रखना, समय का ध्यान रखना
और सवालों का का हल करना। यह सब इन बच्चों के जीवन को अधिक कठिन और
चुनौतीपूर्ण बनाता है।
डॉ. सममानी आगे कहती हैं, "परीक्षा के दौरान
तो विशेष तौर पर एडीएचडी से परेशान बच्चों का तनाव कई गुना बढ़ जाता है।
इन्हें कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जो सुनने में एकबारगी
तो आम लगती हैं, लेकिन इनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं हैं।"
ये हैं समस्याएं...
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