इस आक्रोश को ओमपुरी ने सशक्तता के साथ परदे पर व्यक्त किया और हिन्दी
सिनेमा में स्वयं को स्थापित किया। ओमपुरी ने जब फिल्मों में कदम रखा था तब
नायक के रूप में चिकने चेहरे वालों को ही लिया जाता था। ओमपुरी का चेहरा
इस मामले में पूरी तरह से उलटा था। उनके चेहरे पर चेचक के बडे-बडे दाग थे,
तिस पर उनकी सांवली रंगत उनके चेहरे को भयावह रूप प्रदान करती थी। गोविन्द
निहलानी पहले ऐसे शख्स थे जिन्होंने ओमपुरी को एक डॉक्यूमेंटी कम एड फिल्म
में मौका दिया था। इस एड फिल्म में उनके काम से प्रभावित होकर उन्होंने
उन्हें अपनी फिल्म ‘आक्रोश’ के लिए चुना। इस फिल्म में उनके साथ थे
नसीरउद्दीन शाह, स्मिता पाटिल और अमरीश पुरी।
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