‘सैराट’ मराठी में बनी है। इसके दृश्य क्रूर समाज में पसर जाने की क्षमता
रखते हैं। इस फिल्म को रूढि़वादियों ने भी देखा और सराहा। यही स्थिति
‘दंगल’ की है। इसे देखने के बाद हर कोई इसकी तारीफ कर रहा है। आमिर खान की
दंगल पूर्ण से महिला सशक्तिकरण पर आधारित है। ‘बेटी बचाओ बेटी पढाओ’ नारे
को सशक्तता प्रदान करने वाली यह फिल्म हर उस इंसान को देखनी चाहिए जो
‘लडकी’ सुनकर मुंह बनाता है या फिर लार टपकाता है। समाज के दोहरे मानदंडों
पर करार तमाचा है ‘दंगल’। इन फिल्मों की सफलता ने संकेत दिया है कि समाज
में बदलाव की बयार बह निकली है। धीरे-धीरे ही सही समाज में बदलाव आएगा,
विशेष रूप से उन समाजों में जिन्होंंने अपने ‘चेहरे’ पर ‘चेहरा’ लगा रखा
है। [@ सोनम के साथ बचपन में हुई ऐसी छेडछाड, आज तक भुला नहीं पाई]
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