जातकर्म से लेकर अंत्येष्टि तक के सोलह संस्कारों का अधिकार सभी वर्णो के
लोगों को है। परंतु आज के जमाने में पंचद्राविड एवं पंचगौड आदि ब्राह्मणों
और चांद्रसेनीय, सूर्यसेनीय, कायस्थ प्रभू, वैश्य, दैवज्ञ तथा पांचाल
समाजों में ही व्रतबंध विधि जनेऊ संस्कार संपन्न की जाती है। व्रतबंध का
अर्थ है- व्रतों का बंधन। [@ शरीर के चिन्हों (सामुद्रिक लक्षणों) से जानें स्त्रीयों की विशेषता]
व्रतों में उत्कृष्ट एवं श्रेष्ठ व्रत
ब्रह्मचर्य यानी विद्यार्जन का समय है। जिस तरह हाल ही लगाए गए नारियल के
पौधे को सहारा दिया जाता है ताकि वह टेढा-मेढा न बढे, उसी तरह कच्ची उम्र
में बच्चों के बिगडने का भय बना रहता है। इसलिए ठीक समय उपनयन अर्थात जनेऊ
एक ऎसा ही उत्तम संस्कार है।
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