ऐसा माना जाता है कि कुण्डली में पूर्व जीवन में किए गए हमारे कर्मों का फल होता हैं। उसी के आधार पर हमारी कुण्डली निर्धारित होती है। ईश्वर हमारे द्वारा किए गए कर्मों को देखता है। कुन्डली में शुभ और अशुभ योगों की मौजूदगी हमारे कर्मों के अनुसार होता है।
इस योग में मूल रूप से दो ग्रह राहु केतु की भूमिका प्रमुख होती है। इन्हीं दोनों ग्रहों के प्रभाव से कालसर्प दोष बनता है।
राहु केतु और काल सर्प दोष
राहु केतु अशुभ और पीड़ादायक ग्रह माने जाते हैं। धर्मशास्त्र एवं ज्योतिषशास्त्र में कई स्थान पर यह उल्लेख आया है कि यह दोनों ग्रह भले दो हैं परंतु वास्तव में यह एक ही शरीर के दो भाग हैं। इनका शरीर सर्प के आकार का है राहु जिसका सिर है और केतु पूंछ। अंग्रेजी भाषा में राहु को ड्रैगन हेड और केतु को ड्रैगन टेल कहा गया है।
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