भटके हुए देवता के मंदिर में उसी साधना-विधान का संक्षिप्त निर्देश है।
उन्होंने बताया कि यहां पत्थर की प्रतिमाओं पर धूप-दीप, गंध-पुष्प चढ़ाकर
ईश्वर के प्रति भक्ति भावना निविदेत की जाती है। साथ ही भक्त दर्पण के
सामने ख़डे होकर अपने स्वरूप को निहारकर अंत:करण की गहराई में झांकने का
अभ्यास करते हैं।
मान्यता है कि इससे मनुष्य रूपी भटके हुए देवताओं को देर-अबेर अपने देव
स्वरूप, ब्रह्म स्वरूप यानी "अहं ब्ब्रह्मस्मि" की अनुभूति अवश्य होगी।
(आईएएनएस)
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