देश दुनिया में अलग अलग तरह से रिवाज अलग अलग समाज में होते हैं। ये रिवाज भी इतने अनोखे होते हैं कि जो कोई भी इन रिवाजों के बारे में सुनता है दंग रह जाता है। भारत में महिलाओं का एक अहम त्यौहार होता है करवा चौथ। इन दिन महिलाएं व्रत कर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
जिस महिला का पति स्वर्गलोक सिधार जाता है उसे विधवा माना जाता है। लेकिन भारत में ही उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में इसका उलटा है। उत्तर प्रदेश में ऎसी जगह हैं जहां महिलाएं अपने पति के जिंदा रहते हुए भी वे तीन महिने के लिए विधवा हो जाती हैं और विधवा महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की दुआ मांगती हैं। सुनने में तो यह अजीब लगता है पर यह सच है।
सूत्रों के अनुसार उत्तर प्रदेश के देवरिया, गोरखपुर, कुशीनगर तथा बिहार के कुछ हिस्सों में एक अनोखी परंपरा है। यहां गछवाहा समुदाय की स्त्रियां विधवा का जीवन व्यतीत करके पति की लंबी उम्र की सलामती मांगती हैं। इस समुदाय के लोग ताड के पेडों से ताडी निकालने का काम करते हैं। ताड के पेड 50 फीट से भी ज्यादा ऊंचे होते हैं। इन पेडों पर चढकर ताडी निकालना बहुत जोखिम का कार्य होता है। ताडी निकालने का काम चैत्र मास से सावन तक चार महीने किया जाता है। गछवाह महिलाएं इन चार महीनों में न तो अपनी मांग में सिंदूर भरती हैं और न ही शृंगार करती हैं। वह अपने सुहाग की सभी निशानियां देवी के पास रखकर अपने पति की सलामती की दुआ मांगती हैं। तरकुलहा गछवाहों की प्रमुख देवी मानी जाती हैं तथा उनका मंदिर गछवाहों का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। ताडी का काम खत्म होने के बाद सभी गछवाह महिलाएं नागपंचमी के दिन तरकुलहा देवी के मंदिर में एकत्रित होती हैं तथा पूजा करने के बाद अपनी मांग भरती हैं। इस पूजा में पशुबलि देने का भी रिवाज है। गछवाहों में यह परम्परा कब से चली आ रही है इसकी कोई पुख्ता जानकारी नहीं है। अधिकतर गछवाहों का कहना है कि वह इस परम्परा के बारे में अपने पूर्वजों से सुनते आ रहे हैं। वैसे हिन्दू धर्म में किसी महिला द्वारा अपने सुहाग चिन्ह को छोडना अपशगुन माना जाता है लेकिन गछवाहों में इसे शुभ माना जाता है।
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