चित्तौडग़ढ़। जिले के आकोला में दिपावली के दूसरे दिन खेंखरा पर्व पर बैलो को भडक़ाने की परंपरा तो पुरे मेवाड़ में सदियों से चली आ रही है। लेकिन गोर्वधन पुजा पर्व पर गायों को भडक़ाने की आकोला कस्बे में अनुठी परम्परा है। गायों को खेंखरा पर्व के दिन सुबह गोवर्धन पूजा के समय ही गायों को भडक़ाया जाता हैं। साथ ही इसके आधार पर आने वाले साल के जमाने का अनुमान लगाया जाता है। आकोला कस्बे के समीप बेड़च नदी के बीच स्थित पुलिया पर सरपंच, पंच पटेल सहित समाज के लोगों की उपस्थिति में आयोजित खेंखरा पर्व पर सफदे गाय सबसे पहले आई। लोगों ने कहा कि आने वाले साल अच्छा रहेगा।
इस पर्व पर पशु पालक अपनी गायों को घरों से नहलाकर विभिन्न रंगो से सजा धजा कर गले में व पैरो में घुंघरू बांध कर खेंखरा स्थल पर लाते है। पुजा अर्चना के बाद प्रतीकात्मक रूप से एक गाय की पुजा की जाती हैं। इसके बाद ग्वाला खेंखरा भडक़ाने के लिए बांस पर बनी हुई चमड़े की कुप्पी व गेढी को हाथ में लेकर गायों के सामने कुप्पी ले जाया जाता है। सबसे पहले भडक़ाने वाली गाय को ग्वाला गाय मालिक के घर तक ले जाता है। ग्वालों ने बताया की लकड़ी की बनी गेढी करीब 100 वर्ष पुरानी है तथा उसका नाम भानानाथ गेढी रखा गया हैं।
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