रिवाज के अनुसार बहन अपनी ससुराल में वैशाख के महीने में गांव के तालाब
की खुदाई करके मिट्टी से भरकर 108 कुंडे मिट्टी तालाब से बाहर निकालती
है। फिर बरसात होती है और तालाब पानी से भर जाता है लेकिन, बहन उस तालाब से
एक बून्द भी पानी नहीं पीती है। भाद्रपद महीने की ग्यारस की तिथि को भाई
अपनी बहन की ससुराल आता है और फिर गांव के लोगों के साथ तालाब के किनारे
जाते हैं। बहन तालाब में उतरती है और भाई बहन की मनुहार कर उसे तालाब से
बाहर लाता है। रीति के अनुसार भाई बहन तालाब के पानी की पूजा करते हैं और
फिर भाई अपनी बहन को उसी तालाब का पानी पिलाता है। यहां मान्यता है ऐसा
करने से अगले जन्म में बहन को समंदर की तरह ही भरा-पूरा और संपन्न पीहर
मिलता है।
पानी सहेजने का है संदेश
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