गांव में अकले रहने वाली महिलाएं सावन के महीने में इन गीतों के जरिए
ही अपनी विरह वेदना और अकेलेपन का दर्द व्यक्त करती हैं। मारवाड़ क्षेत्र
में आज भी इस गीत की तासीर जस की तस है। जानलेवा गर्मी के बाद आने वाले
मानसून में बरसने वाली बारिश की बूंदें गर्मी की तपिश से तो निजात दिलाती
हैं, लेकिन एक बड़ा तबका ऐसा भी है जिनके लिए रिमझिम बरसते बादल तपिश और
बढ़ा देते हैं। महिलाएं का जिनके पति चार पैसे कमाने के लिए परदेस में रहते
हैं, वह लोग साल या दो साल में एक बार ही घर आते हैं, तब गीत के स्वर
सुनाई देते हैं। यही वजह है कि बरसात की पहली फुहार से लेकर दीवाली की
हल्की ठंडक तक यहां घर-घर से कुरजां के बोल गूंजते हैं।
कहां से आती है कुरजां
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