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जोधपुर। मारवाड़ देश का ऐसा क्षेत्र है जहां के लोकरंग गीतों में भी नजर आ जाते हैं। इस विरह गीत ‘कुरजां ऐ म्हारा भंवर मिला दीजो ऐ’ में कुरजां के माध्यम से नारी के सात समंदर पार अपने पति को सन्देश पहुंचाने का शानदार चित्रण है। असल मायने में नारी की तो अन्तरात्मा की आवाज ही ये लोकगीत है। इसमे राग-विराग, घृणा-प्रेम, दु:ख की जिन भावनाओं को नारी स्पष्ट नहीं कह पाती, उन्हें उसने लोकगीतों के द्वारा गाकर सुना दिया है। ये ऐसा गीत है जिसमें नारी अपने अन्त:स्थल को खोल कर रख दिया है। इसमें न वह कहीं रुकी, न झिझकी और न ही शर्मायी । विरहिणी ने अपनी विरह वेदना का संदेश कुरुजां पक्षी के माध्यम से प्रियतम को भिजवाना चाहा, जिसमें असीम करुणा और मिलन की ललक समाहित है।
कब जागती है हूक
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