कहा जाता है कि जैसलमेर पहले अथाह समुद्र हुआ करता था और कई समुद्री जीव
समुद्र सूखने के बाद यहां जीवाश्म बन गए व पहाड़ों का निर्माण हुआ। हाबूर
गांव में इन पहाड़ों से निकलने वाले इस पत्थर में कई खनिज व अन्य जीवाश्मों
की भरमार है। जिसकी वजह से इस पत्थर से बनने वाले बर्तनों की भारी डिमांड
है। साथ ही वैज्ञानिकों के लिए भी ये पत्थर शोध का विषय बन गया है। इस
पत्थर से सजे दुकानों पर बर्तन व अन्य सामान पर्यटकों की खास पसंद होते हैं
और जैसलमेर आने वाले वाले लाखों देसी विदेशी सैलानी इसको बड़े चाव से खरीद
कर अपने साथ ले जाते हैं।
क्यों है खास हाबूर का पत्थर
इस
पत्थर में दही जमाने वाले सारे कैमिकल मौजूद है। विदेशों में हुए रिसर्च
में ये पाया गया है कि इस पत्थर में एमिनो एसिड, फिनायल एलिनिया, रिफ्टाफेन
टायरोसिन हैं। ये कैमिकल दूध से दही जमाने में सहायक होते हैं। इसलिए इस
पत्थर से बने कटोरे में दूध डालकर छोड़ देने पर दही जम जाता है। इन बर्तनों
में जमा दही और उससे बनने वाली लस्सी के पयर्टक दीवाने हैं। अक्सर सैलानी
हाबूर स्टोन के बने बर्तन खरीदने आते हैं। इन बर्तनों में बस दूध रखकर छोड़
दीजिए, सुबह तक शानदार दही तैयार हो जाता है, जो स्वाद में मीठा और सौंधी
खुशबू वाला होता है। इस गांव में मिलने वाले इस स्टोन से बर्तन, मूर्ति और
खिलौने बनाए जाते हैं। ये हल्का सुनहरा और चमकीला होता है। इससे बनी
मूर्तियां लोगों को खूब अट्रैक्ट करती हैं।
इनका कहना है
दुकानदार
मनोज किराड़ू का कहना है कि हाबूर स्टोन अपने नाम से बिकता है और पर्यटक
बड़े चाव से इसको दही जमाने के उद्देश्य से अपने साथ लेकर जाते हैं।
वहीं
एक पर्यटक गाइड ने बताया कि महासमुद्र खत्म होने के बाद हाबूर गांव से
निकलने वाला ये पत्थर अपने अंदर कई खनिज समाए हुए है। इसकी खासियत की वजह
से ही ये जैसलमेर आने वाले पर्यटकों की पहली पसंद है।
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