हरिद्वार। देवसंस्कृति विश्वविद्यालय
के कुलाधिपति श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि साधना के माध्यम से मन को वश कर
किया हुआ साधक परमात्मा के निकट होता है और उनकी आत्मा पवित्र होती है। वे सकारात्मक
विचारधारा से भरा हुआ होता है।
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कुलाधिपति श्रद्धेय डॉ. पण्ड्या
जी देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के मृत्युंजय सभागार में साधकों को नवरात्र साधना के
सातवें दिन संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भगवान के नियम-अनुशासन का पालन करने
वाला साधक, व्यक्ति ही उनकी कक्षा में प्रवेश कर पाता है। ऐसे साधकों का साधना में
मन लग लगता है और वे भगवान के निकट होते हैं। युवाओं के प्रेरणास्रोत श्रद्धेय डॉ.
पण्ड्या ने कहा कि साधक के मन की लय और लीनता के साथ ही साधना के अगले क्रम में प्रवेश
होता है, जो प्रभु को प्रिय है। इसके साथ ही गीता के मर्मज्ञ श्रद्धेय डॉ. पण्ड्या
ने श्रीमद्भगवतगीता के छठवें अध्याय के विभिन्न श्लोकों तथा प्राचीन ग्रंथों का उद्धरण
के साथ साधकों के मन में उठने वाली जिज्ञासाओं का समाधान किया। स्वाध्याय के अंतिम
चरण में श्रीमद्भगवतगीता की महाआरती हुई।
इससे पूर्व संगीतज्ञों ने सितार, बांसुरी आदि प्राचीन वाद्ययंत्रों के सुमधुर धुन से
भक्तिगीत प्रस्तुत कर उपस्थित साधकों को भक्तिभाव में स्नान कराया। इस अवसर पर कुलपति,
प्रतिकुलपति, कुलसचिव, समस्त विभागाध्यक्ष, देसंविवि व शांतिकुंंज परिवार सहित देश
विदेश से आये साधक गण उपस्थित रहे।
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