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ऋषि चिंतन: शिष्टाचार—सच्ची संपत्ति

Sage Reflections: Manners—True Wealth - News in Hindi

एक प्राचीन कहावत है कि मनुष्य का परिचय उसके "शिष्टाचार" से मिल जाता है। उसका उठना, बैठना, चलना, फिरना, बातचीत करना, दूसरों के घर जाना, रास्ते में परिचितों से मिलना, ऐसे प्रत्येक कार्य एक अनुभवी को यह बतलाने के लिए पर्याप्त हैं कि वास्तव में व्यक्ति किस हद तक सामाजिक, शिष्ट एवं शालीन है। "सभ्यता" और "शिष्टाचार" का पारस्परिक संबंध काफी घनिष्ट है। इतना कि एक के बिना दूसरे को प्राप्त कर सकने का ख्याल निरर्थक है। जो सभ्य होगा, वह अवश्य ही शिष्ट होगा और जो शिष्टाचार का पालन करता है, उसे सब कोई सभ्य बतलाएँगे। ऐसा व्यक्ति सदैव ऐसी बातों से बचकर रहता है, जिससे किसी के मन को कष्ट पहुँचे या किसी प्रकार के अपमान का बोध हो। ऐसे व्यक्ति अपने विचारों को नम्रतापूर्वक प्रकट करते हैं और दूसरों के कथन को भी आदर के साथ सुनते हैं। ऐसा व्यक्ति आत्मप्रशंसा के दुर्गुण से दूर रहता है। वह अच्छी तरह जानता है कि अपने मुख से अपनी तारीफ करना "ओछे" व्यक्तियों का लक्षण है । सभ्य और शिष्ट व्यक्ति को तो अपना व्यवहार और बोलचाल ही ऐसा रखना चाहिए कि उसके संपर्क में आने वाले स्वयं उसकी प्रशंसा करें। "प्रशंसा" सुनने की लालसा व्यक्तित्व निर्माण में घातक है। शिष्टाचार में ऐसी शक्ति है कि मनुष्य किसी को बिना कुछ दिए-लिए अपने और परायों का श्रद्धाभाजन और आदर का पात्र बन जाता है, पर जिनमें शिष्टाचार का अभाव है, जो चाहे जिसके साथ अशिष्टता का व्यवहार कर बैठते हैं, ऐसे लोगों के घर के आदमी भी उनके अनुकूल नहीं होते। बहुत से लोग शिक्षा और अच्छे फैशन वाले वस्त्रों के प्रयोग को ही सभ्यता और शिष्टाचार का मुख्य अंग समझते हैं, पर यह धारणा गलत है। महँगी और बढ़िया पोशाक पहनने वाला व्यक्ति भी अशिष्ट हो सकता है और गाँव का एक हल चलाने वाला अशिक्षित किसान भी शिष्ट कहा जा सकता है। इस दृष्टि से जब हम अपने पास-पड़ोस पर दृष्टि डालते हैं और आधुनिक शिक्षा प्राप्त नवयुवकों को देखते हैं, तो हमें खेद के साथ स्वीकार करना पड़ता है कि इस समय हमारे देश में से शिष्टाचार की प्राचीन भावना का ह्रास हो रहा है। आज के पढ़े-लिखे युवक प्रायः शिष्टाचार को शून्य और उच्छृंखलता को आश्रय दे रहे हैं। कॉलेज और स्कूलों में पढ़ने वाले अधिकांश विद्यार्थी रास्ते में और विद्यालय में भी आपस की बातचीत में अकारण ही गालियों का प्रयोग करते हैं, अश्लील भाषा का प्रयोग करते हैं और धक्का-मुक्की करते दिखाई देते हैं। इन सबके उठने-बैठने का तरीका भी सभ्य नहीं कहा जा सकता। उपरोक्त प्रवचन पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा लिखित पुस्तक संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र पृष्ठ-20 से लिया गया है।

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Web Title-Sage Reflections: Manners—True Wealth
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