लोगों में एक बहुत बुरी आदत यह पायी जाती है कि अपनी कठिनाइयों का कारण किसी दूसरे का कसूर सोच कर सस्ते में अपना मन हल्का करते रहते हैं। अमुक ने जादू टोना करके हमें या हमारे परिवार को हैरानी में डाल दिया है । ऐसा सोचते रहने वाले और निर्दोष पड़ोसियों पर अकारण ही दुर्भाव थोपते रहने वालों की कमी नहीं। भूत-पलीतों और ग्रह-नक्षत्रों पर ऐसे ही इल्जाम लगाने वालों की मूर्ख मंडली के सदस्य लाखों नहीं करोड़ों होंगे। भाग्य को कोसने वाले, हस्तरेखाओं के रचयिताओं पर अन्याय का दोष लगाने वाले किसी से पीछे नहीं। माँ-बाप ने अमुक कमी न रखी होती, जैसे सोचते-कहते हुए असंख्यों पाए जाते हैं। ऐसे ही भ्रम जंजाल में फँसने वाले वे लोग हैं, जो अपनी कठिनाइयों के ऐसे असंख्यों कारणों में से एक का भी विचार नहीं करते, जिनसे निज के दोष-दुर्गुणों पर भटकाव, अनाचार एवं अचिंत्य चिंतन का पर्दाफाश होता है। सरलता इसी में प्रतीत होती है कि क्यों न उपासना जैसे किसी ऐसे माध्यम को दोषी ठहरा दिया जाए जो सामने खड़ा होकर अपनी सफाई देने और झूठे इल्जाम के बदले गाल पर तमाचा जडऩे की स्थिति में नहीं है । ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
अवांछनीय दोषारोपण से अपनी आत्मा कलुषित होती है। आत्म-निरीक्षण और आत्म-सुधार का अवसर हाथ से निकलता है। प्रतिरोधों से जूझने की सामथ्र्य कुंठित होती है। जब देवता या भगवान ही विपत्ति बरसाने के कारण हैं, तो उनसे जूझने की प्रतिकार चेतना कोई किस प्रकार उभारे। ऐसी मन:स्थिति में हताश होकर आँसू बहाते रहने या जिस पर दोष थोपा गया है, उसे कोसते रहने के अतिरिक्त और कोई चारा ही शेष नहीं रह जाता। यह मन:स्थिति मनुष्य का भविष्य अंधकारमय बनाने वाली सिद्ध हो सकती है।
उपरोक्त प्रवचन पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा लिखित पुस्तक साधना से सिद्धि - पृष्ठ-112 से लिया गया है।
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