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ऋषि चिंतन: मनुष्य के दुःख का कारण—असंयमित जीवन शैली है



मनुष्य को सृष्टि एवम् साधन के रूप में जो कुछ मिला है, वह समुचित उपयोग के लिए ही मिला है। वह सब इसलिए है कि इसकी सहायता से मनुष्य जीवन को अधिकाधिक समुन्नत तथा सुंदर बनाए। सुख-शांतिपूर्वक अपनी पूरी आयु का उपयोग करे। मनुष्य जीवन अल्पायु अथवा अरूपता के लिए नही मिला है। यह अपने में सत्यं शिवं सुंदरम् की उपलब्धि करने के लिए ही प्राप्त हुआ है। नियामक सत्ता ने मनुष्य को विवेक शक्ति देकर अवश्य ही यह अपेक्षा की होगी कि वह संसार का सबसे स्वस्थ, सुंदर और शक्ति-संपन्न प्रतीक बने। वह अपने कर्त्तव्य से संसार को सुंदरतम बनाए और निर्माता का सच्चा प्रतिनिधित्व करे। किंतु मनुष्य का स्वरूप तथा उसका कार्य-कलाप इस अपेक्षा से बिलकुल विपरीत दृष्टिगोचर होता है। यह दिन-दिन अस्वस्थ, असुंदर, अस्त-व्यस्त होता जा रहा है।

यह निर्विवाद सत्य है कि मनुष्य जब तक नियति नियमों के अनुशासन में होकर नहीं चलेगा, तब तक दिन-दिन उसका पतन ही होता जाएगा। वह दिन-दिन और अधिक विपन्नतापूर्ण अशांति से घिरता जाएगा। वह यों ही रोएगा-चिल्लाएगा और पग-पग पर नारकीय यातना पाता हुआ कीड़े-मकोड़े की तरह मरता रहेगा।



जब सृष्टि के सारे साधन, सारे उपकरण और समस्त संपदाएँ सुख-साधन करने के लिए ही मिली हैं तो क्या कारण है कि उनके बीच रहते, उनका उपभोग करते हुए भी मनुष्य दीनता, दयनीयता और दुःख को प्राप्त होता जा रहा है ? जो दूध, दही, घी, अन्न आदि पदार्थ मनुष्य को बच्चे से बड़ा कर जवान कर देते, स्वास्थ्य एवं सुंदरता प्रदान करते हैं, एक दिन मनुष्य उन्हीं का उपयोग करता- करता रोगी बन जाता है, क्षीण हो जाता है और सारी शक्ति खो देता है।


इसका कारण है-मनुष्य का असंयम एवं नियति नियमों के प्रति विद्रोह। जो विद्युत-शक्ति मनुष्य के बड़े-बड़े कार्य संपादित करती है, वही बिजली अनियमपूर्वक छूने अथवा अनियमित रूप से उपयोग करने पर विनाश का कारण बन जाती है। जो अन्न मनुष्य को जीवन देता है, उसको प्राण कहा जाता है। उसका अनियमित उपयोग प्राणों का संकट बन जाता है।


नियति-नियमनों के अनुकूल चलने और नैसर्गिक अनुशासन मानने पर ही मनुष्य उन्नति एवं समृद्धि की दिशा में अग्रसर हो सकता है। इसके अतिरिक्त ऐसा कोई उपाय नहीं है जो मनुष्य को सुखी एवं शांत बना सके। मर्यादाओं का उल्लंघन न करें – पृष्ठ-06 पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

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Web Title-Rishis thoughts: The reason for mans sorrow is uncontrolled lifestyle
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