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ऋषि चिंतन: ईश्वर उपासना आवश्यक क्यों ?

चील अपने शिकार की खोज के लिए आसमान की ओर उड़ान भरती है। एक निश्चित ऊंचाई पर जाकर वह गोलाई में चक्कर लगाना प्रारंभ करती है। वहां से उसे अधिक दूर दूर तक की चीजें देखने में सुगमता मिलती है। चील उस ऊंचाई से जमीन की प्रत्येक दृश्य वस्तु को बड़ी सूक्ष्मता से परखती है और जब उसे अपने शिकार का पता चल जाता है तो वह तेज झपट्टा मारकर उसे पकड़ ले जाती है। चील यह कार्य जमीन में या कम ऊंचाई वाले वृक्षों पर बैठकर भी कर सकती थी पर छोटी ऊँचाई से छोटे स्थान का ही अवलोकन किया जा सकता है। छोटी सी जगह में शिकार मिले या न मिले इस संदेह से बचने के लिए ही वह ऊँची उठती, नीचे देखती और आसानी से अपना शिकार खोज लेती है । मनुष्य की स्थिति भी ठीक ऐसी ही है । अपने आस पास की वस्तुओं को वह स्थूल आँख और छोटे विवेक से परखता है, इसलिए मनुष्य जीवन में आने का अपना लक्ष्य वह अधिक निश्चय पूर्वक नहीं खोज पाता । अपने जीवनोद्देश्य से परिचित रहे व्यक्ति के तौर तरीके रहन सहन और विचार व्यवहार भी प्रायः अस्तव्यस्त श्रेणी के होते हैं। जिस मनुष्य ने सही लक्ष्य का ज्ञान प्राप्त न किया हो उसका जीवन व्यर्थ ही समझना चाहिए । ईश्वर उपासना से मनुष्य को वह स्थिति प्राप्त होती है जहां से वह अधिक सूक्ष्मता, दूरदर्शिता एवं विवेक के साथ संसार और उसकी परिस्थितियों का निरीक्षण करता है। अपने ही खुद के अहंकार से संसार की तुलना करने से मनुष्य के प्रत्येक कार्य में संकीर्णता रहती है, संकीर्णता के कारण आत्मा अपनी विशालता का, शक्ति और सामर्थ्य का आनंद नहीं लूट पाती, मनुष्य तुच्छ बना रहता है, ठीक उसी तरह जिस तरह सृष्टि के अन्य जीव जन्तु । आत्मा के सच्चे स्वरूप के ज्ञान के लिए वह ऊंचाई अपेक्षित है जो ईश्वर उपासना से मिलती है। सही लक्ष्य का ज्ञान उस स्थिति का बार बार मनन किए बिना प्राप्त नहीं होता है। जब भी कोई ईश्वर उपासना के लिए तत्पर होता है तो वह इस आधार को ही लेकर चलता है कि इस संसार की कोई नियामक शक्ति अवश्य होनी चाहिए । प्रत्येक वस्तु का कोई न कोई रचयिता होता है। तब विश्व का सृजनकर्ता भी कोई अवश्य होगा । जब इस तरह की मान्यता अन्त:करण में उदय होती है तो तत्काल मनुष्य के सोचने के ढंग में परिवर्तन होता है। अब तक जो वस्तुएं उसे सामान्य सी प्रतीत होती थीं अब उनमें विशद ज्ञान भरा पड़ा दिखाई देने लगता है। इस तरह मनुष्य का ज्ञान विकसित होता है और विश्व के सच्चे स्वरूप को जान लेने की छटपटाहट भी । यह दोनों बातें मनुष्य के सही लक्ष्य के चुनाव के लिए आवश्यक थी। दोनों ही ईश्वर उपासना से मिलती हैं। उपासना जीवन की अनिवार्य आवश्यकता पृष्ठ-5 पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

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Web Title-Rishi Contemplation: Why is worship of God necessary?
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