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ऋषि चिंतन: प्रतिभा परिवर्धन, हर दृष्टि से श्रेष्ठ संपदा—पं.श्रीराम शर्मा आचार्य

Rishi contemplation: Enrichment of talent, the best wealth in every sense-Pt.Shriram Sharma Acharya - News in Hindi

जनसाधारण के बीच प्रतिभाशाली अलग से चमकते हैं । जैसे पत्तों व काँटों के बीच फूल, तारों के बीच चंद्रमा। यह जन्मजात उपलब्धि नहीं है और न किसी का दिया हुआ वरदान। इसे भाग्यवश मिला हुआ आकस्मिक संयोग-सुयोग भी नहीं कहा जा सकता। यह स्व उपार्जित सम्पदा है। इस कार्य में दूसरे कुछ सहायक तो हो सकते हैं, पर प्रधानता तो अपने प्रबल प्रयास की ही रहती है।

धन आता है और चला जाता है। रूप यौवन भी सामयिक है। उसका सम्बन्ध चढ़ते खून से है। किशोर और तरुण भी सुंदर दिखते हैं। इसके बाद ढलान आरम्भ होते ही अवयवों में कठोरता और चेहरे पर रुक्षता की हवाइयाँ उडऩे लगती हैं। विद्या उतनी ही स्मरण रहती है जितने की व्यवहार में काम आती है। मित्र, सहयोगी, सम्बन्धी, सहायकों के मन बदलते रहते हैं। आवश्यक नहीं कि उनकी घनिष्ठता सदा एक ही बनी रहे। अधिकार भी चिरस्थायी नहीं हैं, समर्थन घटते ही वे दूसरों के पास चले जाते हैं। वयोवृद्धों के उत्पादन की, परिश्रम की क्षमता घट जाती है। आयु वृद्धि के साथ-साथ स्मरण शक्ति और स्फूर्ति भी जवाब देने लग जाती है । ऐसी दशा में तब कोई योजना बनाना और उसे चलाना भी, बस से बाहर हो जाता है । यह सब मरण के ही लक्षण हैं। जीवनी शक्ति का भंडार धीरे-धीरे चुकता है और फिर वह अंतत: जवाब दे जाता है ।

विकासोन्मुख शरीर, चढ़ते खून और परिपक्व व्यक्तित्व वाले दिनों में ही रहता है । उसे भले ही कोई आलस्य-प्रमाद में गुजारे, भले ही कोई लिप्सा-लालसा की वेदी पर विसर्जित कर दें। कोई-कोई तो उन दिनों भी अतिवादी उद्दंडता दिखाने से नहीं चूकते। यह सब शक्तियों और संभावनाओं के भंडार मनुष्य जीवन के साथ खिलवाड़ करने जैसा है। दूरदर्शी वे हैं जो विभूतियों में सर्वश्रेष्ठ प्रतिभा को मानते हैं और उसके सम्पादन हेतु प्राणपण से प्रयत्न करते हैं; क्योंकि वही हर स्थिति में साथ रहती है, अपनी तथा दूसरों की गुत्थियाँ सुलझाती है और जन्म-जन्मांतरों तक साथ रहकर, क्रमश: अधिकाधिक ऊँचे स्तर वाली परिस्थितियों का निर्माण करती रहती है । इस उपार्जन के लिए किए गए प्रयत्नों को ही, हर दृष्टि से सराहा और स्वर्ण संपदा की तरह किसी भी बाजार में भुनाया जा सकता है। भौतिक प्रगति में भी उसी के चमत्कार दिखते हैं और आदर्शवादी परमार्थ अपनाने वाली महानता को भी उसी के सहारे विकसित परिष्कृत होते हुए देखा जा सकता है।

उपरोक्त प्रवचन पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा लिखित पुस्तक युग की माँग-प्रतिभा परिष्कार, पृष्ठ 16 से लिया गया है।

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Web Title-Rishi contemplation: Enrichment of talent, the best wealth in every sense-Pt.Shriram Sharma Acharya
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