अनावश्यक संकोच पारिवारिक कलह की वृद्धि में सबसे प्रधान कारण है । बाहर के आदमियों से तो हम घुल मिलकर बात करते हैं, परंतु घरवालों से सदा उदासीन रहते हैं, बहुत ही संक्षिप्त वार्तालाप करते हैं। बहुत कम परिवार ऐसे देखे जाते हैं जिनके घर के लोग एक दूसरे से अपने मन की बात कह सकें। शिष्टाचार, बड़प्पन, लिहाज, लाज, पर्दा आदि का वास्तविक रूप नष्ट होकर उसका ऐसा विकृत स्वरूप बन गया है कि घर के सब लोग अपनी-अपनी मनोभावनाएँ, आवश्यकताएँ और अनुभूतियाँ एक दूसरे के सम्मुख रखते हुए झिझकते हैं। इस गलती का परिणाम यह होता है कि सब लोग एक दूसरे को ठीक से समझ नहीं पाते हैं। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
किसी बात पर मतभेद हो तो उस मतभेद को अवज्ञा, अपमान या विरोध मान लिया जाता है-ऐसा नहीं होना चाहिए। किसी बात का निर्णय करना हो तो घर के सभी सलाह दे सकने के योग्य स्त्री-पुरुषों की सलाह लेनी चाहिए। अपने भाव प्रकट करने का हर एक को अवसर दिया जाए, जो काम करना हो उसे इस प्रकार अच्छी भूमिका के साथ तर्क और उदाहरण के साथ रखना चाहिए कि उस पर घरवालों की सहमति मिल जाए। हर व्यक्ति यह अनुभव करे कि मेरी सहमति से ही यह कार्य हुआ। जिस प्रकार राज्य संचालन में प्रजा की सहमति आवश्यक है उसी प्रकार गृह व्यवस्था में परिजनों की सहमति रहने से शांति और व्यवस्था रहती है। परिवार की प्रजा यह न समझे कि किसी की इच्छा जबरदस्ती हमारे ऊपर थोपी जा रही है, वरन् उसे यह भान होना चाहिए कि सब के लाभ और हित के लिए विचार विनिमय, विवेक के साथ नीति निर्धारित की गई है तथा औचित्य एवं ईमानदारी को व्यवस्था संचालन में प्रधान स्थान दिया जा रहा है। इस सरल स्वाभाविक और बिना किसी कठिनाई की नीति का जिस परिवार में पालन किया जाता है वहाँ सब प्रकार सुख शांति बनी रहती है।
उपरोक्त प्रवचन पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा लिखित पुस्तक गृहस्थ-एक सिद्ध योग पृष्ठ-27 से लिया गया है।
दूसरे टीजर की तैयारी में हैं पुष्पा : द रूल के निर्माता, दिखाए जाएंगे फिल्म के शॉट्स
चीन में 20 हजार स्क्रीन्स पर प्रदर्शित होगी 12वीं फेल: विक्रांत मैसी
रहमान ने किया था कपिल शर्मा को याद, मौका गंवाने का है अफसोस
Daily Horoscope