यों
तो जीवन की आवश्यकताएँ कितनी हैं, इसकी कोई सीमा या कसौटी नहीं है। मनुष्य की कुछ आवश्यकताएँ
अनिवार्य होती हैं, कुछ साधारण और कुछ बहुत ही आवश्यक। अपनी आर्थिक स्थिति को देखकर
ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए कि अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति पहले हो और फिर दूसरी आवश्यकताएँ
पूरी हों।
बहुत
से लोग धन की उपयोगिता झूठी शान-शौकत, दिखावा, फैशन परस्ती एवं दुर्व्यसनों की पूर्ति
में ही समझते हैं। ऐसा करना उनके लिए तो हानिकारक है ही, समाज के लिए भी हानिकारक होता
है, क्योंकि गरीब लोग जिनके पास अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए धन नहीं होता,
वे ऐसे शान-शौकत, दिखावे और फैशन- परस्ती को बड़प्पन समझते हैं और पर्याप्त साधन न
होने पर दूसरों से ईर्ष्या रखते हैं । अपव्यय के कारण बरबाद हुए समृद्ध परिवारों के
भी अनेक उदाहरण है। अपव्यय का एक मात्र कारण हमारी अदूरदर्शिता है। धन को हमने झूठी
शान-शौकत की पूर्ति का साधन मान लिया है जो केवल मनुष्य का थोथापन ही है। अच्छा तो
यह है कि अपने पास इतना पैसा हो कि आवश्यकता पूर्ति के बाद कुछ बचे तो आड़े वक्त काम
आए या किसी और कार्य में लगाया जा सके।
यह
मानना भूल है कि जितनी शान-शौकत का प्रदर्शन करेंगे, जितने ठाठ-बाट से रहेंगे और अपनी
आवश्यकताओं को जितना अधिक बढ़ा लेंगे, लोग हमें उतना ही सुखी समझेंगे। लोग भले ही समझने
लगें कि आप सुखी हैं, पर इन व्यर्थ की आवश्यकताओं को बढ़ा लेने से जो आर्थिक परेशानियाँ
खड़ी हो जाती हैं, वे हमें बड़ी बुरी तरह दुःखी और संत्रस्त करके रख देती हैं। ये कृत्रिम
आवश्यकताएँ ऐसा दुर्गुण हैं, जिससे मनुष्य अपने पैरों पर अपने आप कुल्हाड़ी मारता है।
इससे आर्थिक कठिनाइयाँ तो आती ही हैं साथ ही व्यक्तिगत और परिवार की उन्नति में भी
बाधा पड़ती है।
फैशन
के व्यसन से आज सभी ग्रस्त हैं। फैशन बढ़ाने के कारण न केवल अपव्यय हो रहा है, बल्कि
अंग-प्रदर्शन फैशन का अंग बन गया है और हमारे नैतिक मूल्यों पर इसका बड़ा गहरा असर
पड़ रहा है। परिवार में झगड़े, कटुता आदि बुराइयाँ इस धन के लालच और लालसा के कारण
पनपती जा रही हैं। विद्यार्थी वर्ग इससे अछूता नहीं बचा है, बल्कि उनमें फैशन और दिखावे
की लालसा बड़ी विकृत होती जा रही है। माँ-बाप जो अपने बच्चों के लिए फैशन की पूर्ति
नहीं कर सकते, उनकी बुरी आदतों की पूर्ति के लिए पैसा नहीं दे सकते, वे बच्चों की निगाह
में गिरे हुए हैं या फिर आर्थिक संकट उठा रहे हैं ।
उपरोक्त
प्रवचन पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा लिखित पुस्तक संतुलित जीवन के व्यावहारिक
सूत्र पृष्ठ-11 से लिया गया है।
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