मोटे तौर पर आहार में पाए जाने वाले रसायन अथवा पोषक तत्व केवल शरीर तक ही अपना प्रभाव
दिखाते हैं, परंतु वस्तुस्थिति यह है नहीं। अध्यात्म शास्त्र के अनुसार "आहार"
मानवी चेतना को भी प्रभावित करता है। उसकी मान्यता है कि वस्तुओं में स्थूल, सूक्ष्म
और कारण ये तीन शक्तियाँ विद्यमान रहती हैं। अध्यात्म विदों के अनुसार अन्न का स्थूल
स्वरूप माँस बनता है। उसके सूक्ष्म रूप से मस्तिष्क एवं विचार बनते हैं और कारण रूप
भावनाओं का निर्माण करता है। यदि आहार में इनका अभाव होगा तो उससे पोषण तो दूर रहा
उलटे रोग ही उत्पन्न होंगे। अन्न के स्वरूप की भाँति ही यह बात भी मनुष्य को प्रभावित
करती है कि वह किस प्रकार अर्जित किया गया है। यदि दुष्वृत्तियों के साथ अनीति पूर्वक
उपार्जित किया गया है तो इससे मस्तिष्क में दुर्बुद्धि ही उत्पन्न होगी। इसी प्रकार
उसे यदि प्रसाद भावना से पकाया और औषधि भावना से खाया न गया होगा, बनाने और खिलाने
वाले की स्नेहसिक्त सद्भावनाओं का इसमें समन्वय न होगा तो उससे खाने वाले का अंतःकरण
विकसित न होगा, उसकी विचारणा एवं भावना के विकास में कोई सहायता न मिलेगी। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
"आहार" न केवल स्थूल दृष्टि से पौष्टिक और स्वल्प होना चाहिए बल्कि उसके
पीछे न्यायानुकूल उपार्जन और सद्भावनाओं का समावेश भी होना चाहिए तभी वह अन्न मनुष्य
के तीनों आवरणों का समुचित पोषण कर सकेगा और स्थूल, कारण तथा सूक्ष्म शरीर को विकसित
कर सकेगा। तभी उससे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक दृष्टि से सर्वांगीण विकास का अवसर
प्राप्त हो सकेगा।
उपरोक्त प्रवचन पंडित श्रीराम
शर्मा आचार्य द्वारा लिखित पुस्तक चिरयौवन का रहस्योद्घाटन पृष्ठ-37 से लिया गया है।
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