दीपक बुझने को होता है तो एक बार वह बड़े जोर से जलता है, प्राणी जब मरता है तो एक
बार बड़े जोर से हिचकी लेता है। चींटी को मरते समय पंख उगते हैं, पाप भी अपने अंतिम
समय में बड़ा विकराल रूप धारण कर लेता है।
युग परिवर्तन की संधिवेला में पाप का इतना उग्र और भयंकर रूप दिखाई देगा जैसा कि सदियों
से देखा क्या, सुना भी न गया था। दुष्टता हद दर्जे को पहुँच जाएगी। एक बार ऐसा प्रतीत
होगा कि अधर्म की अखंड विजयदुंदुभि बज गई और धर्म बेचारा दुम दबाकर भाग गया, किंतु
ऐसे समय भयभीत होने का कोई कारण नहीं । अधर्म की भयंकरता अस्थायी होगी, उसकी मृत्यु
की पूर्व सूचना मात्र होगी। अवतार प्रेरित धर्म-भावना पूरे वेग के साथ उठेगी और अनीति
को नष्ट करने के लिए विकट संग्राम करेगी । रावण के सिर कट जाने पर भी फिर नए उग आते
थे, फिर भी अंततः रावण मर ही गया।
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अधर्म से धर्म का, असत्य से सत्य का, दुर्गंध से मलयानिल का, सड़े हुए कुविचारों से नवयुग निर्माण की दिव्य भावना का घोर युद्ध होगा।
इस धर्मयुद्ध में ईश्वरीय सहायता न्याय पक्ष को मिलेगी। पांडवों की थोड़ी-सी सेना कौरवों
के मुकाबले में, राम का छोटा-सा वानर दल, विशाल असुर सेना के मुकाबले में विजयी हुआ
था। अधर्म-अनीति की विश्वव्यापी महाशक्ति के मुकाबले में सतयुग निर्माताओं का दल छोटा-सा
मालूम पड़ेगा, परंतु भली प्रकार नोट कर लीजिए, हम भविष्यवाणी करते हैं कि निकट भविष्य
में, सारे पाप-प्रपंच ईश्वरीय अग्नि में जलकर भस्म हो जाएँगे और संसार में सर्वत्र
सद्भावों की विजयपताका फहराएगी ।
उपरोक्त प्रवचन पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा लिखित अखण्ड ज्योति जनवरी 1943
पृष्ठ 16 से लिया गया है।
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