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राजसमन्द: राजस्थान की संगमरमरी धरती पर प्रकृति और इतिहास का अनोखा संगम

राजस्थान के दिल में बसा राजसमन्द, केवल एक ज़िला नहीं बल्कि इतिहास, संस्कृति और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत संगम है। यह स्थान उदयपुर से लगभग 65 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और अपनी विशिष्ट संगमरमर खदानों के लिए देश-विदेश में प्रसिद्ध है। राजसमन्द के कण-कण में इतिहास की महक, धर्म की आस्था और प्रकृति की शांति समाई हुई है, जो हर पर्यटक के मन को छू लेती है। इस क्षेत्र का सबसे प्रमुख और ऐतिहासिक स्थल है कुम्भलगढ़ का क़िला, जिसे महाराणा प्रताप की जन्मस्थली होने का गौरव प्राप्त है। यह क़िला न केवल अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी विशाल दीवार — जो चीन की दीवार के बाद दूसरी सबसे लंबी दीवार मानी जाती है — उसे और भी अद्वितीय बनाती है। यहां की वास्तुकला और प्राकृतिक नज़ारे यात्रियों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। राजसमन्द का नाम जिस झील पर रखा गया है, वह राजसमन्द झील स्वयं में एक आकर्षण है। यह कृत्रिम झील न केवल जलस्रोत के रूप में महत्वपूर्ण है, बल्कि इसकी सीढ़ियों पर उकेरी गई शिल्पकला और शिलालेख इसे ऐतिहासिक दृष्टि से भी विशेष बनाते हैं।
इतिहास में दिलचस्पी रखने वालों के लिए हल्दीघाटी किसी तीर्थ से कम नहीं है। यहीं पर महाराणा प्रताप और मुग़ल सेनापति मानसिंह के बीच ऐतिहासिक युद्ध हुआ था। यह स्थल न केवल वीरता की गाथा कहता है, बल्कि यहां स्थित संग्रहालय और स्मारक इस युद्ध की झलकियों को जीवंत कर देते हैं।
धार्मिक दृष्टि से भी राजसमन्द अत्यंत समृद्ध है। चारभुजा जी का मंदिर, द्वारिकाधीश मंदिर और अनेक प्राचीन शिव मंदिर यहां के आध्यात्मिक परिवेश को जीवंत बनाए रखते हैं। हर मंदिर की अपनी कथा है, और हर दर्शन श्रद्धालुओं को एक अनोखा अनुभव देता है।
पर्यटन प्रेमियों के लिए वन्य जीव अभयारण्यों और प्राकृतिक ट्रैकिंग स्थलों की भरमार है। कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य में दुर्लभ प्रजातियों के वन्यजीवों को देखा जा सकता है। साथ ही यहां की पहाड़ियां, घाटियां और घने जंगल साहसिक पर्यटन के शौकीनों को खूब लुभाते हैं।
राजसमन्द का एक अन्य महत्वपूर्ण पक्ष है इसकी खानें और मार्बल उद्योग। यहां उत्पादित सफेद संगमरमर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा जाता है और यह न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी भवन निर्माण और सजावट के लिए निर्यात किया जाता है। उद्योग के क्षेत्र में यह जिला निरंतर विकास की ओर अग्रसर है।
यह वह भूमि है जहां कदम-कदम पर आश्चर्य बिखरे पड़े हैं। ऊँचे क़िलों से लेकर शांत झीलों तक, भव्य मंदिरों से लेकर वीरता के मैदानों तक – राजसमन्द हर यात्री को अपने विविध रंगों से चौंकाता है। यहाँ आकर आप न सिर्फ राजस्थान की शौर्यगाथाओं से रूबरू होते हैं, बल्कि उसकी सांस्कृतिक गहराइयों को भी महसूस कर सकते हैं।
राजस्थान यूँ तो अपने किले, महलों और मरुस्थलों के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन राजसमन्द जैसे ज़िलों में इसकी आत्मा बसती है – जहाँ परंपरा, धर्म, प्रकृति और इतिहास एक साथ सांस लेते हैं। हर बार आने पर कुछ नया देखने को मिलता है, कुछ अनदेखा, कुछ अनसुना – जो आपको आश्चर्य से भर देता है।
राजसमन्द की यात्रा एक ऐसा अनुभव है जो इतिहास, संस्कृति, प्रकृति और आध्यात्म का संगम एक ही स्थान पर कराता है। हर मोड़ पर एक नई कहानी, हर पत्थर में एक नई परंपरा, और हर मंदिर में एक नई आस्था की लहर छिपी है।
आइए, राजसमन्द में स्वागत है – जहां हर मोड़ पर बसा है इतिहास, और हर पत्थर कहता है कोई कहानी।
कुम्भलगढ़ का क़िला: मेवाड़ की शान और सुरक्षा का प्रतीक
राजस्थान के उदयपुर से लगभग 84 किलोमीटर दूर अरावली की पहाड़ियों में बसा कुम्भलगढ़ का क़िला मेवाड़ की गौरवगाथा का प्रतीक है। 15वीं शताब्दी में राणा कुम्भा द्वारा बनवाया गया यह दुर्ग महाराणा प्रताप की जन्मस्थली है और रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। इतिहास में केवल एक बार यह किला शत्रुओं के हाथों गिरा — वह भी पीने के पानी की कमी के कारण।
इसकी 36 किलोमीटर लंबी दीवार विश्व की दूसरी सबसे लंबी दीवार मानी जाती है, जिस पर आठ घुड़सवार एक साथ चल सकते हैं। किले के भीतर मौर्यकालीन मंदिर, आकर्षक बादल महल, और सुरम्य दृश्य पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।
महाराणा फतेह सिंह ने 19वीं शताब्दी में इसका पुनर्निर्माण करवाया, जिससे यह किला आज भी अटूट खड़ा है — इतिहास, संस्कृति और वास्तुकला की एक जीवित मिसाल के रूप में।

नीलकण्ठ महादेव

प्रसिद्ध शिव मंदिर जिसे नीलकण्ठ महादेव मंदिर कहते हैं, कुम्भलगढ़ क़िले के पास ही स्थित है। यह मंदिर 1458 ई. में बनवाया गया था, जिसमें पाषाण से बना 6 फुट ऊँचा शिवलिंग दर्शनीय है। इस मंदिर की सबसे महत्त्वपूर्ण रचना है इसमें चारों ओर से प्रवेश द्वार, जिन्हें सर्वतोभद्र कहा जाता है। इसके अलावा इसमें एक खुला मंडप है जिसे दूर से देखा जा सकता है। प्रत्येक शाम को नीलकण्ठ महादेव परिसर में वेदी के पवित्र स्थल के पास पर्यटकों हेतु ’लाइट एण्ड साउण्ड शो’ आयोजित किया जाता है। यहाँ के वातावरण, समृद्ध इतिहास तथा मंदिरों व क़िले की भव्यता को देखकर आप अभिभूत हो जाएंगे।
कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभ्यारण्य: अरावली की गोद में बसा जीवन से भरा जंगल
उदयपुर से करीब 65 किलोमीटर दूर स्थित कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभ्यारण्य कुम्भलगढ़ किले के चारों ओर फैला हुआ है और प्रकृति प्रेमियों के लिए एक अद्भुत ठिकाना है। अरावली की पहाड़ियों में बसे इस अभ्यारण्य में तेंदुआ, भेड़िया, लकड़बग्घा, जंगली बिल्ली, सांभर, चिंकारा, नीलगाय जैसे वन्यजीवों की उपस्थिति रोमांचक अनुभव देती है।
यहां सैकड़ों प्रजातियों की चिड़ियाँ, औषधीय पौधे और हरियाली से भरे जंगल पर्यटकों को शांति और रोमांच दोनों का अहसास कराते हैं। अगर आप प्रकृति के करीब आना चाहते हैं, तो यह जगह आपकी यात्रा का खास हिस्सा बन सकती है।
गोलेराव जैन मंदिर
गोलेराव जैन मंदिर, कुम्भलगढ़ किले के समीप स्थित एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जो नौ मंदिरों के समूह का हिस्सा है। यह मंदिर सुंदर और शांत वातावरण में बसा हुआ है। यहाँ के मंदिरों में खासतौर पर भवन देवी मंदिर के पास, दीवारों और खम्भों पर जटिल और आकर्षक मूर्तियां बनी हुई हैं, जो देवी-देवताओं के रूप में दर्शायी गई हैं। गोलेराव जैन मंदिर अपनी वास्तुकला और धार्मिक महत्ता के कारण पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
राजसमन्द झील
राजसमन्द झील उदयपुर से लगभग 66 किलोमीटर उत्तर दिशा में, राजनगर और कांकरोली के बीच फैली एक विशाल और खूबसूरत झील है। इसे महाराणा राज सिंह प्रथम ने 1662 से 1676 के बीच गोमती, केलवा और ताली नदियों पर बांध बनाकर बनाया था। इस झील और बांध का निर्माण मुख्य रूप से सूखे से जूझ रहे स्थानीय लोगों को रोजगार देने और किसानों को सिंचाई की सुविधा प्रदान करने के लिए किया गया था। विश्व युद्ध द्वितीय के समय इस झील का उपयोग ‘इम्पीरियल एयरवेज’ द्वारा समुद्री विमान आधार के रूप में भी किया गया था।
राजसमन्द झील राजस्थान के पुराने और बड़े राहत कार्यों में से एक है, जिसका निर्माण लगभग चालीस लाख रुपए की लागत से हुआ था। इसकी परिधि 22.5 वर्ग किलोमीटर, गहराई लगभग 30 फीट और जल ग्रहण क्षेत्र करीब 524 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। हालांकि, सूखे के समय जैसे 2000 में यह झील पूरी तरह सूख गई थी और सूखी घाटी जैसी स्थिति बन गई थी। यह झील न केवल प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है बल्कि अपनी ऐतिहासिक और सामाजिक महत्ता के कारण भी महत्वपूर्ण है।

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Web Title-Rajsamand: A Unique Confluence of Nature and History on Rajasthans Marble Land
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