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नवरात्रि छठा दिवस: वास्तविक प्रसन्नता

Navratri sixth day: real happiness - News in Hindi

दुनिया पर यदि दृष्टिपात किया जाए तो एक - दो नहीं सैंकड़ों व्यक्ति हँसते - खेलते, बोलते, मुदित तथा प्रसन्न होते दिखलाई देंगे । उनको देखकर यह कहना कठिन हो जाएगा कि इनके जीवन में कोई दुःख, ताप, अशांति या असंतोष भी हो सकता है। कहने के लिए यह भी कहा जा सकता है कि ये सब श्रेष्ठ आत्मा व्यक्ति होंगे, इन्हें आत्मशांति मिल चुकी होगी तभी तो यह प्रसन्नता इनके मुख - मंडलों पर विराजमान दिखलाई दे रही है; पर बात वास्तव में वैसी नहीं होती । उनकी प्रसन्नता का रूप वही होता है जैसे कोई स्वप्न अथवा सन्निपात में हँसता या प्रसन्न होता है। उनकी वह प्रसन्नता मौलिक नहीं होती और न स्थायी ही । या तो वे उस समय किसी पदार्थ भोग से छले होते हैं अथवा लाभ अथवा प्राप्ति से विमोहित । उनके हर्ष का हेतु खोज कर हटा दिया जाए, तो उनका उल्लास भी नष्ट हो जाएगा। वास्तविक अथवा आध्यात्मिक हर्ष तो वह माना जाएगा जो -अहेतुक हो। जिसका आधार आत्मा के अतिरिक्त और कुछ न हो। संसार के नश्वर और क्षणिक सुख भोग से अनुभव होने वाला हर्ष एक छलना, सो भी नश्वर छलना के समान ही होता है, जिसका प्रवञ्चन भी अधिक देर तक नहीं ठहरता। यथार्थ तथा स्थायी प्रसन्नता उसी को कहा जा सकता है जिसका विकल्प दुःख कदापि न हो। आज किसी को व्यापार में लाभ हुआ है, किसी का विवाह हुआ है अथवा किसी को पुत्र की प्राप्ति हुई है। वह प्रसन्न तथा हर्षित दिखलाई देता है इसका अर्थ यह नहीं कि उस उल्लास के माध्यम से उसकी आत्म-श्रेष्ठता व्यक्त हुई है। वह हर्ष, वह उल्लास, वह प्रसन्नता उक्त लाभ अथवा उत्सव की प्रतिक्रिया मात्र होती है। जो पुनः आवेग समाप्त हो जाने पर शमन हो जाती है और मनुष्य अपनी उदासीन स्थिति में वापस चला जाता है और पुनः खेद और दुःख अनुभव करने लगता है।
जो प्रसन्नता लाभ में बनी रही, वह हानि में भी स्थिर रहे, जो सम्पत्ति के समय अनुभव हो वही विपत्ति के समय, जो अनुकूलताओं में जाग्रत रहे और प्रतिकूलताओं में भी नष्ट न हो, वही सच्ची तथा श्रेष्ठता-जन्य प्रसन्नता मानी जाएगी।
आत्मा की श्रेष्ठता परमात्मा की उपासना से प्राप्त होती है। नास्तिक अथवा अनाध्यात्मिक व्यक्ति संसार का कोई भी वैभव, कोई भी पदार्थ और कोई भी भोग क्यों न प्राप्त करले पर उसे सच्ची आत्मोत्कृष्टि नहीं मिल सकती । इस संसार में जो कुछ शुभ है, श्रेष्ठ है, उत्कृष्ट और मंगलमय है वह सब उस परमपिता की ही विभूति है । उसी से संपन्न होती है और उसी में आश्रित है। संसार की सारी श्रेष्ठताओं को परमात्मा का ही आभास माना गया है।परमात्मा से ही सब कुछ सुंदर है और उसी से सब कुछ मंगलमय है। अस्तु आत्मा की श्रेष्ठता प्राप्त करने के लिए संसार के साधनों की ओर न जाकर परमात्मा की ही उपासना करनी चाहिए।

ईश्वर और उसकी अनुभूति पृष्ठ-91 पं.श्रीराम शर्मा आचार्य

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Web Title-Navratri sixth day: real happiness
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