राजस्थान की पूर्वी सीमा पर बसा करौली, अपने लाल पत्थरों से बनी भव्य इमारतों, हवेलियों और चित्रित छतरियों के लिए प्रसिद्ध है। मध्य प्रदेश की सीमा से सटे इस शांत शहर में धर्म, स्थापत्य और प्रकृति का अनोखा मेल देखने को मिलता है। मुगल शैली से प्रभावित वास्तुकला और रणथम्भौर के नज़दीक स्थित यह शहर न सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि इतिहास और प्राकृतिक सुंदरता का भी अद्भुत संगम है।
यह शहर विशेष तौर पर लाल पत्थरों से बनी इमारतों के लिए जाना जाता है, जो इसे एक अलग ही पहचान देते हैं। शहर की अधिकांश ऐतिहासिक इमारतों में यही पत्थर उपयोग में लिया गया है, जिससे पूरा करौली एक चमकदार लाल रंग की आभा से जगमगाता हुआ नजर आता है। यह लाल पत्थर न केवल स्थानीय निर्माण में काम आता है, बल्कि इसकी आपूर्ति पूरे भारत में की जाती है। स्थापत्य प्रेमियों के लिए यह शहर एक जीवंत संग्रहालय की तरह है, जहां हर कोने में इतिहास की गूंज सुनाई देती है।
करौली के रमणीय स्थलों में शांति और अध्यात्म की विशेष अनुभूति होती है। यहाँ स्थित मंदिर, विशेष रूप से श्री मदन मोहन जी का मंदिर, श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। यही नहीं, करौली की भौगोलिक स्थिति भी इसे खास बनाती है — इसके एक सिरे पर जहाँ रणथम्भौर के जंगल हैं, वहीं दूसरी ओर घने अरावली पर्वतों की छाया में बसे गाँव और खेत इस शहर को प्राकृतिक रूप से भी समृद्ध बनाते हैं। रणथम्भौर के नज़दीक होने के कारण, कभी-कभी यहाँ के शांत वातावरण में शेरों की दहाड़ भी सुनाई दे जाती है, जो रोमांच प्रेमियों को अपनी ओर खींचती है। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
कैला देवी मन्दिर
करौली के बाहरी इलाके में लगभग 25 किमी दूरी पर कैला देवी का प्रसिद्ध मन्दिर है जो कि त्रिकुट की पहाड़ियों के बीच कालीसिल नदी के किनारे पर बना हुआ है। यह मन्दिर देवी के नौ शक्ति पीठों में से एक माना जाता है तथा इसकी स्थापना 1100 ईस्वी में की गई थी, ऐसी मान्यता है। कैला देवी मन्दिर में प्रतिवर्ष हिन्दी कैलेण्डर के अनुसार चैत्र माह (मार्च-अप्रैल) में विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। यह हनुमान जी का मन्दिर है, जिसे यहाँ के लोग ’लांगुरिया’ नाम से पुकारते हैं।
मदन मोहन जी मंदिर
मदन मोहन जी अर्थात् भगवान कृष्ण जी का मंदिर बड़ा भाग्यशाली माना जाता है। योद्धा लोग युद्ध पर जाने से पहले यहाँ आशीर्वाद लेने आया करते थे। यह मध्ययुगीन मंदिर कृष्ण जी और उनकी संगिनी राधा जी के लिए जाना जाता है। इसकी स्थापत्य कला में करौली के लाल पत्थर की सुंदर नक़्काशीदार कला नज़र आती है।
कैला देवी अभ्यारण्य
करौली में मंदिर, महल और क़िले के अलावा एक अभ्यारण्य भी है। कैला देवी मंदिर के पास घने जंगलों में बाघ, लोमड़ी, चिंकारा, नीलगाय, तेंदुआ, सियार आदि को इस अभ्यारण्य में चिंतारहित विचरण करते हुए देखा जा सकता है। यह अभ्यारण्य आगे जाकर रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान में मिल जाता है। हरीतिमा से आच्छादित यह स्थल प्रवासी पक्षियों जैसे किंगफिशर, सैन्ड पाइपर, क्रेन्स आदि का घर है।
सिटी पैलेस
करौली का सिटी पैलेस, लगभग चौदहवीं सदी में राजा अर्जुनपाल द्वारा बनवाया गया था। उसके बाद अट्ठारहवीं सदी में राजा गोपाल सिंह ने इसके स्वरूप को निखारा। यहाँ की नक़्काशी, जाली, झरोखे और भित्तिचित्रों में प्रयोग किए गए खूबसूरत रंग और शैली इस महल को ख़ास महत्व प्रदान करते हैं। लाल पत्थर के साथ, सफेद पत्थरों का मेल इस महल के आकर्षण में और भी बढ़ोतरी करता है। इस महल के ऊपर की तरफ से विषाल भद्रावती नदी का सौन्दर्य और पूरे करौली शहर का नयनाभिराम दृश्य देखा जा सकता है।
गुफ़ा मंदिर
यह मंदिर वास्तविक रूप से कैलादेवी का असली मंदिर माना जाता है तथा रणथम्भौर के घने जंगलों के बीच स्थित, इस मंदिर के आस पास सभी तरह के जंगली जानवर दिखाई देते हैं। पर्यटकों को यहाँ जाने के लिए सावधानी बरतना अत्यावश्यक है। स्थानीय लोग यहाँ प्रतिदिन पूजा के लिए 8-10 कि. मी. पैदल चलकर भी आते हैं। करौली में देखने लायक़ बहुत से मंदिर, क़िले, जंगल, नदी के तट और महल हैं। यहाँ पर आने के लिए सितम्बर से मार्च तक का समय अति उत्तम है। जून से अगस्त के बीच यहाँ अच्छी बरसात होती है। करौली में स्थानीय हस्तशिल्पियों द्वारा बनाई गई चमड़े की जूतियां, चाँदी के आभूषण, कांच की चूड़ियाँ तथा लकड़ी के खिलौने पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। करौली राजस्थान में पूर्व की ओर जयपुर से लगभग 160 कि.मी. दूर, राष्ट्रीय राजमार्ग 11 पर स्थित है। नजदीकी हवाई अड्डा जयपुर का सांगानेर एयरपोर्ट है। रेल मार्ग हिण्डौन सिटी रेल्वे स्टेशन से तथा दिल्ली मुम्बई जाने के लिए गोल्डन टैंपल मेल और पश्चिम एक्सप्रेस से जुड़ा हुआ है।
गधमोरा
अरावली पर्वत श्रृंखला की सुरम्य गोद में बसा गधमोरा एक प्राचीन और ऐतिहासिक नगर है, जिसकी उत्पत्ति के बारे में कहा जाता है कि यह भगवान कृष्ण के काल में हुई थी। इस नगर का नाम इसके प्राचीन शासक राजा मोरध्वज के नाम पर पड़ा। गधमोरा के मंदिरों और स्थापत्य कला में कोणार्क मंदिर की शैली की झलक मिलती है, जो इसे और भी विशिष्ट बनाती है।
यहाँ के 13वीं-14वीं शताब्दी के बौद्ध स्तूप, केदारनाथ बाबा की गुफा, भगवान देवनारायण का मंदिर जैसे अनेक दर्शनीय स्थल पर्यटकों और श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं। खासतौर पर नारायणी माता का मंदिर यहां की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान है, जहाँ हर साल मकर संक्रांति के मौके पर विशाल मेला लगता है, जो स्थानीय परंपराओं और उत्सवों का जीवंत उदाहरण है।
गधमोरा न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि ऐतिहासिक धरोहर और प्राकृतिक सौंदर्य का भी अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है।
मण्डरायल
करौली से लगभग 40 कि. मी. की दूरी पर स्थित मण्डरायल मध्य प्रदेश की सीमा से मिलता है। यहाँ पर महाराजा हरबक्श पाल द्वारा एक सैन्य रक्षक क़िले का निर्माण किया गया। कुछ समय तक यहाँ मुस्लिम क़िलेदार मियां-मकान था। तत्पश्चात् सन् 1327 ईस्वी में राजा अर्जुन देव ने इस किले पर कब्जा कर इसकी महत्ता में बढ़ोतरी की थी। इसके बीच में बना बारादरी मंदिर तथा यहाँ का मगरमच्छ अभ्यारण्य (क्रोकोडाईल सैंक्चुअरी) देखने लायक़ है।
देवगिरी किला तथा उत्गीर किला
चम्बल नदी की सुन्दर घाटियों के बीच, करौली से लगभग 70 कि. मी. की दूरी पर, देवगिरी का क़िला अपना सर उठाए खड़ा है। करौली के वंशज, इस क़िले का उपयोग आपातकालीन सैन्य रक्षक दुर्ग के रूप में किया करते थे। यह यदुवंशियों की राजधानी थी तथा अरावली के त्रिकोणीय शिखर पर स्थित देवगिरी का निर्माण, लोध योद्धाओं द्वारा किया गया था।
तिमनगढ़ किला
करौली से लगभग 40 किलोमीटर दूर स्थित तिमनगढ़ किला राजस्थान की वीरता, स्थापत्य और संघर्षपूर्ण इतिहास का प्रतीक है। यह प्राचीन दुर्ग 11वीं सदी में राजा तिमनपाल द्वारा बनवाया गया था। समय-समय पर इस पर हुए भीषण हमलों ने इसकी मूल संरचना को काफी क्षति पहुँचाई, लेकिन 1058 ईस्वी में राजा तिमनपाल ने इसका पुनर्निर्माण कर इसे एक भव्य रूप प्रदान किया।
किले की वास्तुकला में तत्कालीन शिल्प और भित्तिचित्रों की उत्कृष्ट झलक देखने को मिलती है। इसके विशाल द्वार, मजबूत दीवारें और शिलालेख आज भी इतिहास के उन सुनहरे पलों की कहानी बयां करते हैं, जब करौली क्षेत्र राजपूताना की शौर्यगाथा का अभिन्न हिस्सा हुआ करता था।
कालांतर में मुगल सम्राट अकबर ने इस किले को अपने अधिकार में ले लिया और अपने एक मंसबदार को उपहार स्वरूप सौंप दिया। तब से यह किला कई सत्ताओं का साक्षी बनते हुए आज खंडहर रूप में भी गौरवपूर्ण अतीत की याद दिलाता है।
यहाँ कैसे पहुंचें: करौली का आसान सफर
करौली पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी हवाई अड्डा जयपुर का सांगानेर एयरपोर्ट है, जो आपको विमान द्वारा शहर से जोड़ता है। अगर आप रेल यात्रा करना पसंद करते हैं तो हिण्डौन सिटी रेलवे स्टेशन सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है। दिल्ली और मुंबई जैसे प्रमुख शहरों से गोल्डन टैंपल मेल, पश्चिम एक्सप्रेस और अन्य ट्रेनों के माध्यम से आसानी से करौली पहुंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग से यात्रा करना हो तो करौली, राजस्थान में जयपुर के पूर्व दिशा में लगभग 160 किलोमीटर दूर राष्ट्रीय राजमार्ग 11 पर स्थित है। राजस्थान के सभी मुख्य शहरों से करौली के लिए बस सेवा उपलब्ध है, जिससे यह शहर आसानी से जुड़ा हुआ है।
इस प्रकार, चाहे आप हवाई, रेल या सड़क मार्ग से यात्रा करें, करौली पहुँचने के विकल्प आपके लिए सुगम और सुविधाजनक हैं।
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