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जयपुर के हृदय में विराजमान हैं गोविंद देव जी, जिनकी आरती में उमड़ती है आस्था की बाढ़

जब भी बात होती है राजस्थान की राजधानी जयपुर की, तो आमतौर पर लोगों की नजरें इसकी गुलाबी दीवारों, ऐतिहासिक किलों और भव्य महलों की ओर जाती हैं। लेकिन इस शहर की एक और पहचान है, जो इसे केवल स्थापत्य ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी अद्वितीय बनाती है—वह है इसका धार्मिक और सांस्कृतिक वैभव। मंदिरों की सघनता और आस्था की गहराई के कारण ही जयपुर को 'छोटी काशी' के नाम से भी जाना जाता है। यहां हर मोड़ पर कोई न कोई मंदिर दिखाई देता है, जो वर्षों पुराना इतिहास, शिल्पकला और श्रद्धा की मिसाल है। जयपुर के मंदिर न केवल पूजा-पाठ के केंद्र हैं, बल्कि यह शहर की जीवंत संस्कृति, स्थापत्य-कला और लोक-परंपराओं के जीवंत प्रतीक भी हैं। गोविंद देव जी मंदिर, जो जयपुर राजपरिवार की आराध्यदेवता की आराधना का प्रमुख केंद्र है, आज भी लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है। यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है, जिन्हें यहां गोविंद देव के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि राजपरिवार और जनमानस की गहन श्रद्धा का केंद्र है।
आमेर के कछवाहा राजवंश के आराध्य
गोविंद देव जी मंदिर, जयपुर के सिटी पैलेस परिसर के जयनिवास गार्डन में स्थित है। यह मंदिर कछवाहा राजवंश के आराध्य देवता गोविंद देव को समर्पित है। यही वजह है कि जयपुर राजपरिवार और आम जनता दोनों ही इस मंदिर से अत्यधिक भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से जुड़े हुए हैं। मंदिर का माहौल हर दिन श्रद्धा, संगीत और भक्ति की ऊर्जा से गूंजता रहता है।
मूर्ति का इतिहास: बृजनाभ की कृति, वृंदावन से लाई गई
मंदिर में विराजित गोविंद देव जी की मूर्ति का इतिहास अत्यंत रोचक है। मान्यता है कि यह मूर्ति स्वयं श्रीकृष्ण के पौत्र बृजनाभ द्वारा बनाई गई थी, और इसी कारण इसे 'ब्रिजकृत' भी कहा जाता है। यह मूर्ति पहले वृंदावन में स्थित थी, जिसे जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय विशेष सम्मान और श्रद्धा के साथ जयपुर लेकर आए थे। उनकी देखरेख में इसे विशेष रूप से सिटी पैलेस परिसर में स्थापित किया गया।

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Web Title-Govind Dev Ji Temple Jaipur A Divine Abode of Krishna Revered by Royals and Devotees Alike
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