राजस्थान का प्रमुख औद्योगिक जिला भीलवाड़ा अपने वस्त्र उद्योग के लिए देश-विदेश में पहचान बना चुका है। इसे 'टेक्सटाइल और करघों का शहर' (City of Textiles and Looms) के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन इस शहर की पहचान सिर्फ उद्योग तक सीमित नहीं है, यह आध्यात्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत समृद्ध है।
भीलवाड़ा का नाम रामस्नेही संप्रदाय से भी गहराई से जुड़ा है। इस पावन भूमि पर रामस्नेही संप्रदाय के प्रवर्तक स्वामी रामचरणजी महाराज ने अपने उपदेशों से लोगों को आत्मबोध की राह दिखाई। यहीं से उन्होंने अपने आध्यात्मिक सफर की शुरुआत की और बाद में शाहपुरा को अपनी यात्रा का प्रमुख केंद्र बनाया। आज रामस्नेही संप्रदाय का मुख्यालय राम निवास धाम, शाहपुरा में स्थित है, जो भक्तों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल बन चुका है।
भीलवाड़ा नाम की उत्पत्ति को लेकर भी विभिन्न मान्यताएं प्रचलित हैं। एक मत के अनुसार, इस क्षेत्र में भील जनजाति निवास करती थी, और उन्हीं के नाम पर इसे भीलवाड़ा कहा गया। वहीं, एक अन्य मान्यता के अनुसार, इस नगर में कभी 'भिलाड़ी' नामक सिक्कों की टकसाल हुआ करती थी, और इसी से ‘भीलवाड़ा’ नाम विकसित हुआ। ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
भीलवाड़ा की सांस्कृतिक जड़ें भी गहरी हैं। स्कंद पुराण में उल्लिखित नागर ब्राह्मणों का संबंध इस क्षेत्र से जोड़ा जाता है, जो इसकी पुरातनता और धार्मिक महत्ता को दर्शाता है।
आज भीलवाड़ा एक ओर जहां वस्त्र निर्यात का हब बना हुआ है, वहीं दूसरी ओर यह अपनी आध्यात्मिक विरासत और ऐतिहासिक कथाओं के कारण भी यात्रियों और शोधकर्ताओं को आकर्षित करता है।
राजस्थान की शान और गौरव, भीलवाड़ा न सिर्फ वस्त्र नगरी के रूप में प्रसिद्ध है, बल्कि यह शहर इतिहास, संस्कृति और आस्था का भी अनमोल संगम है। यहाँ हर मोड़ पर कुछ नया है — एक मंदिर, एक स्मारक, एक कहानी — जो आपको समय की गहराइयों में ले जाती है।
भीलवाड़ा का हर रंग, हर धड़कन आपको राजस्थान के जीवंत रूप की झलक देता है। यहाँ हर दिन, हर यात्रा, एक नई खोज की ओर ले जाती है।
क्योंकि राजस्थान में हर वक्त कुछ देखने, सुनने और जीने को होता है। आइए डालते हैं एक नजर राजस्थान की वस्त्र उद्योग नगरी भीलवाड़ा के पर्यटन स्थलों पर—
आसींद: देवनारायण भगवान की धरती, श्रद्धा और इतिहास का संगम
भीलवाड़ा से लगभग 55 किलोमीटर दूर, खारी नदी के तट पर बसा छोटा लेकिन ऐतिहासिक नगर आसींद अपने धार्मिक महत्व और प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। शांत वातावरण, सरल जीवनशैली और आध्यात्मिक आस्था से परिपूर्ण यह कस्बा आज भी अपने भीतर सदियों पुरानी परंपराओं को सहेजे हुए है।
आसींद की पहचान उससे जुड़े लोक देवता देवनारायण बगड़ावत जी से होती है, जिनका जन्म सवाई भोज के पुत्र के रूप में हुआ था। यहां स्थित सवाई भोज मंदिर न सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि राजस्थान की वीरता, संस्कृति और लोककथाओं की जीवंत छवि भी प्रस्तुत करता है। माना जाता है कि यह मंदिर कई सौ वर्षों पुराना है और इसके गर्भ में इतिहास की कई अनकही कहानियां छिपी हैं।
इस मंदिर की देखरेख एक ट्रस्ट द्वारा की जाती है, जो वर्षभर श्रद्धालुओं की सेवा और आयोजन की व्यवस्था करता है। खास अवसरों पर यहां विशाल मेलों और धार्मिक आयोजनों का आयोजन होता है, जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु भाग लेते हैं। इन मेलों में न केवल भक्ति भाव की गूंज होती है, बल्कि राजस्थान की लोक कला, संगीत और संस्कृति का अद्भुत संगम भी देखने को मिलता है।
आसींद केवल एक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि वह स्थान है जहाँ लोक आस्था, इतिहास और परंपरा एक साथ जीती हैं।
बदनोर फोर्ट
भीलवाड़ा में मध्ययुगीन भारतीय वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण बदनोर क़िला स्थित है। सात मंजिला, चौड़ा यह किला एक छोटी सी पहाड़ी पर बना हुआ है। भीलवाड़ा से 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भीलवाड़ा ब्यावर रोड़ पर स्थित है। बदनोर क़िले के परकोटे के भीतर कई छोटे स्मारकों और मंदिरों के भी दर्शन किये जा सकते हैं।
पुर उड़न छतरी
भीलवाड़ा शहर से लगभग 10 कि.मी. दूर उपनगर ’पुर’ में एक पहाड़ी पर उड़न छतरी बनी हुई है। पुर में अधर शिला महादेव नामक स्थान पर एक विशाल चट्टान अधर में टिकी हुई है, यह भौगोलिक आश्चर्य पर्यटकों को आकर्षित करता है।
बागोर साहिब
बागोर साहिब एक ऐतिहासिक गुरूद्वारा है जहां श्री गुरू गोविन्द सिंह जी पंजाब की यात्रा पर जाते समय ठहरे। यह गुरूद्वारा तहसील मांडल के गांव बागोर में मांडल शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित है। यहाँ की यात्रा से दसवें सिख गुरू, श्री गुरू गोविन्द सिंह जी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है।
चामुण्डा माता मंदिर
चामुंडा माता मंदिर हरनी महादेव की पहाड़ियों पर स्थित है। शिखर पर पहुँचने के बाद, पूरे शहर का विहंगम दृश्य देखने को मिलता है। यह स्थान, भीलवाड़ा से सिर्फ 5 किलोमीटर दूर है, यदि आप सुकून की तलाश में हैं तो यह स्थान सर्वथा उपयुक्त है।
मेजा बाँध: भीलवाड़ा का हरियाली से भरा सुकून भरा ठिकाना
भीलवाड़ा से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मेजा बाँध जिले का सबसे बड़ा जलाशय है। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर यह स्थान अपने हरे-भरे बाग-बगिचों और शांत वातावरण के लिए जाना जाता है। यहाँ आने वाले पर्यटक न सिर्फ जलस्रोत की ठंडी हवा का आनंद लेते हैं, बल्कि परिवार के साथ पिकनिक का भी पूरा लुत्फ उठाते हैं।
शहर की भागदौड़ से दूर यह एक शांत और सुकूनदायक स्थल है, जहाँ प्रकृति प्रेमी घंटों बैठकर सुकून महसूस कर सकते हैं।
मेनाल जलप्रपात: प्रकृति और आस्था का अद्भुत संगम
भीलवाड़ा से लगभग 80 किलोमीटर दूर, कोटा रोड पर स्थित मेनाल जलप्रपात एक ऐसा स्थल है जहाँ प्रकृति की भव्यता और आध्यात्मिक शांति एक साथ मिलती हैं। घने जंगलों से घिरे इस झरने की जलधारा करीब 150 फीट गहराई में गिरती है, जिसकी गूंज दूर तक सुनाई देती है और दृश्य इतना मनमोहक होता है कि देखने वाले की नज़र ठहर जाती है।
यहाँ स्थित प्राचीन महानालेश्वर महादेव मंदिर भी श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। शिल्प और शांति से भरपूर यह स्थान देशी-विदेशी पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है।
बिजोलिया: तीर्थ, कला और इतिहास का संगम
भीलवाड़ा जिले में स्थित बिजोलिया अपने धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ का प्रमुख आकर्षण है श्री दिगंबर जैन पार्श्वनाथ अतिशय तीर्थक्षेत्र, जो करीब 2700 साल पुराना माना जाता है और तीर्थंकर पार्श्वनाथ को समर्पित है।
इसके अलावा मंदाकिनी मंदिर परिसर में स्थित प्राचीन हजारेश्वर महादेव मंदिर और अन्य शिव मंदिर भी श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। पास ही बना जल कुण्ड और मंदिरों की कलात्मक शिल्पकला इस स्थल को और भी खास बना देती है। बिजोलिया एक ऐसा स्थान है जहाँ आस्था और वास्तुकला साथ-साथ बोलते हैं।
तिलस्वां महादेव: प्राचीनता और भक्ति का जीवंत प्रतीक
बिजोलिया से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित तिलस्वां महादेव मंदिर परिसर एक प्राचीन धार्मिक स्थल है, जहाँ चार ऐतिहासिक मंदिर स्थित हैं। इनमें से मुख्य मंदिर सर्वेश्वर महादेव को समर्पित है, जिसकी स्थापत्य शैली इसे 10वीं–11वीं सदी का बताती है।
मंदिर परिसर में एक प्राचीन मठ, जलकुंड, और एक भव्य तोरण द्वार (विजय स्तंभ) भी मौजूद है, जो इसकी सांस्कृतिक और स्थापत्य महत्ता को दर्शाते हैं। महाशिवरात्रि के अवसर पर यहाँ विशाल मेला लगता है, जिसमें दूर-दराज़ से हजारों श्रद्धालु भक्ति के भाव से जुटते हैं।
यह स्थान इतिहास, भक्ति और शांत प्राकृतिक वातावरण का एक सुंदर मेल है।
जहाज़पुर: इतिहास, धर्म और स्थापत्य का अद्भुत संगम
भीलवाड़ा से करीब 90 किलोमीटर दूर स्थित जहाज़पुर एक ऐतिहासिक कस्बा है, जो अपनी प्राचीन विरासत और विविध धार्मिक स्थलों के लिए जाना जाता है। कस्बे के दक्षिण में एक ऊँची पहाड़ी पर बना विशाल किला, दोहरी प्राचीरों और अनेकों बुर्जों के साथ आज भी मेवाड़ की सीमाओं की रक्षा की कहानी सुनाता है। ऐसा माना जाता है कि इस किले का निर्माण राणा कुंभा ने करवाया था।
किले और गांव के बीच फैले क्षेत्र में बारह देवरा नामक शिव मंदिरों का समूह स्थित है, जो इस क्षेत्र की धार्मिक आस्था को दर्शाते हैं। किले के भीतर सर्वेश्वरनाथ जी का प्राचीन मंदिर भी विशेष महत्व रखता है।
जहाज़पुर में स्थित मुनिश्वरनाथ जी का जैन मंदिर जैन धर्मावलंबियों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है, वहीं समीप ही स्थित गैबी पीर की मस्जिद, मुग़लकालीन सूफ़ी संत मोहम्मद गैबी के नाम से प्रसिद्ध है, जो अकबर के समय यहां वास करते थे। यहाँ की धार्मिक विविधता, स्थापत्य वैभव और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि इसे भीलवाड़ा का एक समृद्ध सांस्कृतिक स्थल बनाते हैं।
शाहपुरा
भीलवाड़ा से 55 कि.मी. दूर शाहपुरा कस्बा है। यह चार दरवाजे वाली दीवार से घिरा, राम स्नेही संप्रदाय के अनुयायियों के लिए सन् 1804 में स्थापित तीर्थस्थान है। इस पंथ का एक पवित्र मंदिर है जिसे रामद्वारा कहा जाता है, इस रामद्वारा के मुख्य पुजारी ही इस पंथ-सम्प्रदाय के मुखिया है। पूरे वर्ष देशभर से तीर्थयात्री इस मंदिर की यात्रा करने आते हैं। यहाँ पांच दिन के लिए फूल डोल मेला के रूप में जाना जाने वाला वार्षिक मेला फाल्गुन शुक्ला (मार्च-अप्रैल) में आयोजित किया जाता है। शाहपुरा के उत्तरी भाग में एक विशाल महल परिसर है, जो छज्जों, मीनारों और छतरियों द्वारा सुशोभित है। इसके ऊपरी भाग से रमणीय झील और शहर के सुंदर दृश्य को देखा जा सकता है। प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी केसरी सिंह, जोरावर सिंह और प्रताप सिंह बारहठ शाहपुरा के थे। त्रिमूर्ति स्मारक, बारहठ जी की हवेली, जो अब राजकीय संग्रहालय में परिवर्तित कर दी गई है। और पिवनीया तालाब यहाँ के अन्य महत्वपूर्ण आकर्षण हैं। शाहपुरा पारंपरिक फड़ चित्रकला के लिए भी जाना जाता है।
गायत्री शक्ति पीठ
गायत्री शक्ति पीठ, हिन्दू धर्म की प्रमुख देवी शक्ति या सती और भक्त सम्प्रदाय के मुख्य आराध्य का पवित्र पूजा स्थल है। भीलवाड़ा में, गायत्री शक्ति पीठ शहर में मुख्य बस स्टैण्ड के पास स्थित है।
धनोप माता जी
संगरिया से 3 किलोमीटर दूर धनोप, एक छोटा गांव है जहां आप शीतला माता मंदिर के दर्शन कर सकते हैं ।यह मंदिर, चमकीली लाल दीवारों और स्तंभों, चौकोर खानों वाले संगमरमर के फर्श की रचना और देवी शीतला माता (देवी दुर्गा का अवतार) की काले पत्थर की प्रतिमा से सुसज्जित है।
मांडल
भीलवाड़ा शहर से करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है मांडल। जहां एक छतरी जगन्नाथ कच्छवाहा के स्मारक के रूप में है, जिसे बत्तीस खम्भों की छतरी के रूप में भी जाना जाता है। जैसा कि नाम से पता चलता है यहाँ एक सुंदर छतरी (स्मारक) है जिसमें बलुआ पत्थर से बने 32 स्तंभ हैं। उनमें निचले और ऊपरी भाग पर सुंदर नक्काशी की हुई है। छतरी में एक विशाल शिवलिंग हैं।
हरनी महादेव
भीलवाड़ा के पास स्थित हरनी महादेव में एक शिव मंदिर है, जो शहर से लगभग 8 किलोमीटर दूर स्थित है। सुरम्य पहाड़ियों से घिरा यह मंदिर पर्यटकों के लिए एक रमणीय स्थल है।
श्री बीड़ के बालाजी
सम्पूर्ण भारत में, बालाजी का नाम एक पंसदीदा नाम है जो देवता श्री हनुमान के लिए प्रयुक्त किया जाता है। श्री बीड़ के बालाजी मंदिर शाहपुरा तहसील के कनेछन गांव से 3 किलोमीटर दूर स्थित है और प्रकृति से घिरा हुआ है। अगर आप असीम शांति का अनुभव करना चाहते हैं तो यह एक सबसे पृथक शानदार स्थान है।
श्री चारभुजानाथ मंदिर: आस्था और परंपरा का जीवंत केंद्र
भीलवाड़ा से लगभग 30 किलोमीटर दूर कोटड़ी ग्राम में स्थित श्री चारभुजानाथ मंदिर एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है, जो भगवान विष्णु के चारभुजा स्वरूप को समर्पित है। यह मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र है और यहाँ सालभर दर्शनार्थियों का आना-जाना लगा रहता है।
जलझूलनी एकादशी के अवसर पर यहाँ एक भव्य मेला आयोजित होता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। मंदिर की शांत वातावरण और धार्मिक ऊर्जा भक्तों को भीतर तक छू जाती है।
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