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जलवायु अनुकूलन आवश्यकताओं व धनराशि के संकल्पों के बीच गहरी खाई, UNEP

 - World News in Hindi

एक ऐसे समय जब दुनिया बढ़ते वैश्विक तापमान और गहन रूप धारण कर रहे जलवायु प्रभावों से जूझ रही है, विकासशील देशों के पास बाढ़, सूखा, तूफ़ान जैसी चरम मौसम घटनाओं से बचाव के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध नहीं हैं. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने आगाह किया है कि इन परिस्थितियों में ज़िन्दगियों, आजीविकाओं और अर्थव्यवस्थाओं के लिए जोखिम गहरा रहे हैं. यूएन पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने Adaptation Gap Report 2025: Running on Empty नामक अपनी रिपोर्ट, ब्राज़ील के बेलेम शहर में आयोजित होने वाले वार्षिक यूएन जलवायु सम्मेलन (कॉप30) से ठीक पहले जारी की है.अध्ययन के अनुसार, जलवायु प्रभावों से बचाव के लिए अनुकूलन योजनाओं में पहले की तुलना में बेहतरी दर्ज की गई है, लेकिन धनराशि की क़िल्लत अब भी है.चरम मौसम आपदाओं से निपटने के लिए अनेक अनुकूलन उपाय अपनाए जा सकते हैं. उदाहरणस्वरूप, समुद्री तटों पर ऊँची, मज़बूत दीवारें, तूफ़ान के लिए समय पूर्व चेतावनी व्यवस्था, जल पर तैरते हुए आवास और सूखे के प्रति सहनसक्षम फ़सलें. Tweet URL

मगर, फ़िलहाल विकासशील देशों के पास ऐसी योजनाओं के लिए धन की कमी है. एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2035 तक विकासशील देशों में अनुकूलन प्रयासों के लिए प्रति वर्ष 310 अरब डॉलर की आवश्यकता होगी.यह आँकड़ा, अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर सार्वजनिक अनुकूलन के लिए फ़िलहाल उपलब्ध रक़म का 12 गुना है.यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने इस रिपोर्ट के लिए अपने सन्देश में ध्यान दिलाया कि अनुकूलन, कोई एक लागत नहीं है, यह एक जीवनरेखा है. “अनुकूलन खाई को पाट कर, हम ज़िन्दगियों की रक्षा कर सकते हैं, जलवायु न्याय दे सकते हैं, और एक सुरक्षित, अधिक टिकाऊ विश्व का निर्माण कर सकते हैं. आइए, हम अब एक भी और क्षण को बर्बाद नहीं करें.”अनुकूलन में निवेशयूएन पर्यावरण कार्यक्रम की कार्यकारी निदेशक इन्गेर ऐंडरसन ने बताया कि पृथ्वी पर हर व्यक्ति को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है: वनों में आग, ताप लहरें, मरुस्थलीकरण, बाढ़, बढ़ती लागत और अन्य असर.उन्होंने चिन्ता जताई कि ग्रीनहाउस गैस में कटौती के लिए कार्रवाई पिछड़ रही है, और ये प्रभाव बद से बदतर होते जाएंगे. इसलिए यह ज़रूरी है कि अनुकूलन के लिए धनराशि को बढ़ाया जाए, सार्वजनिक व निजी सैक्टर, दोनों से. और इस प्रक्रिया में सम्वेदनशील परिस्थितियों से जूझ रहे कमज़ोर देशों को कर्ज़ के बोझ से बचाना होगा.वर्ष 2023 में विकासशील देशों के लिए 26 अरब डॉलर की धनराशि उपलब्ध थी, जबकि 2022 में यह आँकड़ा 28 अरब डॉलर था. यानि आवश्यकता और वास्तविकता के बीच की खाई को पाटने के लिए कम से कम 284 अरब डॉलर की धनराशि की दरकार है.यदि इस कमी के रुझान को जल्द नहीं बदला गया तो 2025 तक अनुकूलन वित्त पोषण को दोगुना करने के लक्ष्य को हासिल कर पाना सम्भव नहीं होगा.अहम निष्कर्षरिपोर्ट के अनुसार, 172 देशों के पास कम से कम एक राष्ट्रीय अनुकूलन नीति, रणनीति या योजना है. केवल 4 देशों ने किसी योजना को तैयार करना शुरू नहीं किया है.हालांकि 36 देशों के उपाय या तो पुराने हो चुके हैं या फिर उन्हें पिछले एक दशक में नहीं बदला गया है, और इसलिए उनमें संशोधन की आवश्यकता है.पेरिस जलवायु समझौते की प्रक्रिया के तहत, देशों ने 1,600 से अधिक अनुकूलन प्रयासों की जानकारी दी है, जोकि जैवविविधता, कृषि, जल व बुनियादी ढाँचे से सम्बन्धित हैं.मगर, ऐसे देशों की संख्या कम है, जोकि वास्तविक परिणामों और प्रभावों की जानकारी दे रहे हैं. किसी भी अनुकूलन योजना के प्रभाव को समझने के लिए यह ज़रूरी है. © World Bank/Andrea Borgarello निजेर में सूखाग्रस्त भूमि पर, एक महिला अपने बच्चे को गोदी में उठाए, पानी भरकर ले जा रही है. बाकू से बेलेम तकयूएन एजेंसी के इन नए आँकड़ों से नवम्बर में, यूएन के वार्षिक सम्मेलन के दौरान जलवायु संकट पर चर्चा के दौरान मदद मिलेगी.इस वर्ष, कॉप30 सम्मेलन ब्राज़ील के बेलेम शहर में हो रहा है, जहाँ विकासशील देशों के लिए वित्तीय संसाधनों में बढ़ोत्तरी करना जलवायु एजेंडा का एक अहम विषय है.साल 2024 में, अज़रबैजान के बाकू में आयोजित यूएन सम्मेलन में एक नया लक्ष्य प्रस्तुत किया गया था – बाकू से बेलेम तक का रोडमैपन. वर्ष 2035 तक सार्वजनिक व निजी सैक्टर से 1,300 अरब डॉलर तक की धनराशि की व्यवस्था करना.यह रक़म केवल अनुकूलन प्रयासों के लिए नहीं है, बल्कि जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता ख़त्म करते हुए नवीकरणीय ऊर्जा की दिशा में बढ़ने के लिए भी है.अनुकूलन रिपोर्ट तैयार करने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि इस धनराशि को ऋण के बजाय अनुदान के तहत दिया जाना होगा, अन्यथा कमज़ोर देशों के लिए अनुकूलन में निवेश कर पाना और कठिन हो जाएगा.

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