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कहीं बाढ़, कहीं सूखा: मौसमी व्यवधान से जल संसाधनों पर दबाव, बढ़ती चरम मौसम घटनाएँ

 - World News in Hindi

विश्व भर में जल संसाधन जलवायु परिवर्तन के गहरे दबाव से जूझ रहे हैं, और देशों व समुदायों को या तो अत्यधिक मात्रा में जल प्रवाह या फिर उसकी भीषण क़िल्लत का सामना करना पड़ रहा है. ग्लेशियर क्षेत्रों में यह लगातार तीसरा वर्ष है जब व्यापक पैमाने पर हिमनदों का पिघलना जारी रहा. वहीं, पिछले वर्ष केवल एक-तिहाई नदी बेसिन क्षेत्रों में ही जल प्रवाह की सामान्य परिस्थितियाँ दर्ज की गई. विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने गुरूवार को ‘वैश्विक जल संसाधनों की स्थिति’ पर जारी अपनी एक नई रिपोर्ट में, से जल चक्र में आ रहे बदलाव, और बाढ़ व सूखे से उपज रही चरम मौसम घटनाओं पर चेतावनी जारी की है.रिपोर्ट के अनुसार, मानव जीवन के लिए इस अहम संसाधन से जुड़ी आपात घटनाओं की वजह से अर्थव्यवस्थाओं व समाजों पर दबाव बढ़ रहा है.यूएन मौसम विज्ञान संगठन (WMO) की महासचिव सेलेस्ते साउलो ने जिनीवा में रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए कहा कि जल, हमारे समाजों को पोषित करते हैं, अर्थव्यवस्थाओं को शक्ति प्रदान करते हैं और हमारे पारिस्थितिकी तंत्रों का आधार हैं.“मगर, फिर भी दुनिया के जल संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है, और इसी समय, चरम जल-सम्बन्धी जोखिमों का हमारी ज़िन्दगियों व आजीविकाओं पर असर गहराता जा रहा है.” एक अनुमान के अनुसार, हर वर्ष कम से कम एक महीने के लिए, 3.6 अरब लोगों को पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध नहीं हो पाता है और 2050 तक यह संख्या बढ़कर 5 अरब तक पहुँच सकती है.यूएन एजेंसी की वार्षिक रिपोर्ट में वैश्विक स्तर पर ताज़ा जल की उपलब्धता का आकलन किया जाता है, जैसेकि जलाशय, नदी प्रवाह, झील, भूमिगत जल, मिट्टी में नमी, बर्फ़ व जमा हुआ पानी.इसे WMO के सदस्य देशों के सहयोग, वैश्विक जल-विज्ञान मॉडल, सैटेलाइट से प्राप्त डेटा समेत अन्य स्रोतों व साझेदारों के साथ मिलकर तैयार किया जाता है.यूएन एजेंसी ने भरोसेमन्द, विज्ञान-आधारित जानकारी की अहमियत को रेखांकित करते हुए कहा कि जिस बारे में जानकारी न हो, उसे सही ढंग से मापा नहीं जा सकता है. इसलिए, हालात की निरन्तर निगरानी और डेटा के आदान-प्रदान पर बल दिया गया है. © USGS अमेरिका के वॉशिंगटन राज्य में साउथ कैस्केड ग्लेशियर पर डेटा एकत्र करते वैज्ञानिक. अहम निष्कर्षनदियाँ व झीलें: पिछले छह वर्षों में केवल एक-तिहाई नदी बेसिन क्षेत्र -- भूमि का वह हिस्सा है जहाँ बर्फ़ व वर्षा से प्राप्त जल एकत्र होता है और फिर नदियों में बह निकलता है -- में सामान्य जल प्रवाह आंका गया.यानि दो-तिहाई बेसिन क्षेत्र में या तो अत्यधिक जल था या फिर बहुत कम मात्रा में, जोकि जल चक्र में आए व्यवधान को दर्शाता है.दक्षिणी अमेरिका क्षेत्र में ऐमेज़ोन, ओरिनोको, साओ फ़्राँसिस्को नदी बेसिन, दक्षिणी अफ़्रीका क्षेत्र में ज़ैम्बेज़ी, लिम्पोपो, ऑरेंज बेसिन में सामान्य से कम जल प्रवाह आंका गया. इसके विपरीत, योरोप व एशिया के कुछ हिस्सों में बेसिन क्षेत्र में सामान्य से अधिक नदी प्रवाह नज़र आया, जिनमें गंगा, गोदावरी, सिन्धु, डेन्यूब समेत अन्य क्षेत्र हैं. वहीं पश्चिमी अफ़्रीका में सेनेगल, निजेर, लेक चाड में नदी बेसिन में अत्यधिक बाढ़ से जूझना पड़ा. मध्यजलवायु परिस्थितियाँ: वर्ष 2024, रिकॉर्ड पर अब तक के सर्वाधिक गर्म साल के रूप में दर्ज किया गया. ऐल नीन्यो मौसमी प्रभाव के साथ शुरू हुए इस वर्ष ने प्रमुख नदी बेसिन में परिस्थितियों पर असर डाला, जिससे ऐमेज़ोन बेसिन और दक्षिणी अफ़्रीका में सूखे की घटनाएँ हुई.वहीं, उत्तरी भारत, पाकिस्तान, मध्य योरोप, पूर्वोत्तर चीन, मध्य व पश्चिमी अफ़्रीका, दक्षिणी ईरान में औसत से कहीं अधिक स्तर दर्ज किया गया.ग्लेशियर: 2024 लगातार तीसरा वर्ष है जब सभी हिमनद क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर जमे हुए पानी की चादर पिघल रही है. 450 गीगाटन का नुक़सान हुआ है, जोकि 7 किलोमीटर ऊँचे, 7 किलोमीटर चौड़े और 7 किलोमीटर गहरे टुकड़े के समान है. इतना जल, जिससे ओलम्पिक खेलों में 18 करोड़ स्विमिंग पूल को भरा जा सके.इस पिघली हुई जलराशि से एक वर्ष में, वैश्विक समुद्री जलस्तर में 1.2 मिलीमीटर की वृद्धि होती है, जिससे तटीय इलाक़ों में रहने वाले करोड़ों लोगों के लिए बाढ़ का जोखिम पनपता है. UNDP India भारत के उत्तराखंड प्रदेश में, हिमालय क्षेत्र में एक ग्लेशियर (हिमनद) के फट जाने से आई तेज़ बाढ़ में भारी चट्टानें और मलबा बह गया और एक बाँध को भारी नुक़सान हुआ. अनेक लोगों की मौत भी हुई. (फ़रवरी 2021) चरम मौसम घटनाएँ: 2024 में एशिया-प्रशान्त क्षेत्र में रिकॉर्ड स्तर पर वर्षा और चक्रवाती तूफ़ान की घटनाएँ हुई, जिनमें 1,000 से अधिक लोगों की जान गई. ब्राज़ील के दक्षिणी हिस्से में भयावह बाढ़ का क़हर बरपा जबकि ऐमेज़ोन बेसिन में सूखे का रुझान जारी रहा, जिसकी चपेट में देश का 59 प्रतिशत क्षेत्र था.योरोप ने 2013 के बाद पहली बार विशाल स्तर पर बाढ़ का सामना किया, वहीं अफ़्रीका में अतीत की तुलना में असाधारण रूप से भीषण बारिश का अनुभव किया गया.

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