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अफ़ग़ानिस्तान भूकम्प: महिलाओं व लड़कियों के लिए पहाड़ जैसी चुनौतियाँ, मामूली मदद

 - World News in Hindi

अफ़ग़ानिस्तान के पूर्वी हिस्से में आए भीषण भूकम्प से जान-माल की व्यापक बर्बादी हुई है, मगर महिलाओं व लड़कियों को इस आपदा की वजह से एक गहरी पीड़ा का सामना करना पड़ रहा है. उनके समक्ष अपना जीवन फिर पटरी पर लाने व परिवार का भरण-पोषण करने की चुनौती है जबकि पर्याप्त सहायता उपलब्ध नहीं है. अफ़ग़ानिस्तान में महिला सशक्तिकरण के लिए यूएन संस्था (UN Women) की प्रतिनिधि सूज़ेन फ़र्ग्यूसन ने शुक्रवार को जिनीवा में जानकारी देते हुए कहा कि बड़े झटके तो अब गुज़र चुके है, लेकिन प्रभावित इलाक़ों में यदि जल्द सहायता मुहैया नहीं कराई गई, तो महिलाओं को दीर्घकाल के लिए एक बड़ी आपदा का सामना करना पड़ेगा.यूएन एजेंसी द्वारा समर्थित एक महिला बचावकर्मी ने बताया कि पर्वतों के किनारों से, ऊबड़खाबड़ रास्तों से होकर वह पीड़ितों के पास किसी तरह से पहुँची, जबकि हर झटके के बाद चट्टानों के गिरने का भय था. Tweet URL

तबाही झेल रहे इलाक़ों में पीड़ित महिलाओं के पास अपनी आवश्यकताएँ व चिन्ताएँ साझा करने का कोई माध्यम नहीं है, और पुरुषों से उनके बात करने पर पाबन्दी है.31 अगस्त को पूर्वी अफ़ग़ानिस्तान में रिक्टर पैमाने पर 6.0 की तीव्रता वाले भूकम्प से कुनार समेत अनेक प्रान्तों में जान-माल की हानि हुई थी. बचावकर्मियों ने कई घंटे दुर्गम इलाक़ों में पैदल चलकर ज़रूरी राहत पहुँचाई.इस आपदा में 2,200 लोगों की जान गई, हज़ारों घायल हुए और पहाड़ी इलाक़ों में बने घर ध्वस्त हो गए.विशेष प्रतिनिधि सूज़ेन फ़र्ग्यूसन ने कुनार प्रान्त के चॉके ज़िले में एक टैंट में आश्रय लेने वाली महिलाओं से बात की, जहाँ मौसम में ठंडक शुरू हो गई है और यह स्पष्ट था कि उन्हें जल्द ही रहने के लिए मज़बूत व्यवस्था की ज़रूरत होगी.“आधी रात में भूकम्प आने के बाद ये महिलाएँ अपने गाँव को छोड़कर भाग गईं, घंटों पैदल चलने के बाद उन्हें अस्थाई शिविर में शरण मिली.”“उन्होंने अपने परिजन को खो दिया था, अनेक अब भी मलबे में दबे हुए हैं. उनके घर खो गए, उनकी आजीविका व आय के साधन चले गए. जैसाकि एक महिला ने मुझे कहा, ‘अब हमारे पास कुछ नहीं है.’”महिला कर्मचारियों पर पाबन्दीभूकम्प प्रभावित इलाक़ों में मानवीय सहायता अभियान में एक बड़ी अड़चन, सत्तारूढ़ तालेबान प्रशासन द्वारा अफ़ग़ान महिला कर्मचारियों और अनुबन्धित कर्मचारियों के यूएन परिसर में प्रवेश पर थोपी गई पाबन्दी है. राजधानी काबुल में यह प्रतिबन्ध 7 सितम्बर से लागू हो गया है.यूएन महिला संस्था की प्रतिनिधि ने कहा कि इस पाबन्दी का हम पर असर हो रहा है, चूँकि महिला कर्मचारियों को काम करने के लिए कार्यालय आने की अनुमति नहीं है.“लेकिन, महिला कर्मचारी व मानवतावादी प्रयासों में जुटी महिलाएँ अब भी भूकम्प प्रभावित स्थानों पर काम कर रही हैं. और यह बहुत ही ज़रूरी है और इसे वास्तव में अति-आवश्यक माना गया है.”भूकम्प में हताहत होने वाले लोगों में 50 फ़ीसदी से अधिक महिलाएँ व लड़कियाँ हैं. अभी तक लापता में भी उनका हिस्सा 60 प्रतिशत है. जीवित बचीं अनेक महिलाएँ टैंट या खुले स्थान पर रहने के लिए मजबूर हैं.सांस्कृतिक खाईइस त्रासदी में जीवित बचे लोगों के लिए स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित करना एक प्राथमिकता है. साथ ही, सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य प्रथाओं के अनुरूप कामकाज के लिए पर्याप्त संख्या में महिलाओं को भी ढूंढा जाना है.यूएन एजेंसी प्रतिनिधि फ़र्ग्यूसन ने कहा कि उन्होंने जो कुछ भी स्वास्थ्यकर्मियों व अन्य महिलाओं से सुना है, वो ये है कि भूकम्प प्रभावित इलाक़ों में कुछ ऐसा सांस्कृतिक नज़रिया व धारणा हैं, जिनमें महिलाएँ नहीं चाहती हैं कि पुरुष उनके साथ सम्पर्क में आएं.और न ही पुरुष ऐसा करना चाहते हैं, भले ही वे उन्हें बचाने की कोशिश कर रहे हों. उन्होंने कहा कि इस सांस्कृतिक सन्दर्भ में, इन महिलाओं को हर दिन अपनी गुज़र-बसर और परिवार के भरण पोषण के लिए एक लड़ाई लड़नी पड़ती है.बुनियादी ढाँचा ध्वस्त हो जाने से महिलाओं व लड़कियों के विरुद्ध हिंसा का ख़तरा बढ़ा है, विशेष रूप से स्नानघर, पानी भरने या अन्य कार्य के लिए जाते समय. उनके बारूदी सुरंगों की चपेट में आने का भी जोखिम है.भूकम्प के बाद अब इन महिलाओं को और अधिक व्यवधान व उथलपुथल से जूझना पड़ रहा है. उनके लिए अपने बच्चों का पेट भर पाना और उनके लिए एक सुरक्षित स्थान की तलाश कर पाना भी कठिन हो गया है.

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