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विश्व मानवतावादी दिवस 2025: मानवीय कार्यकर्ताओं की बढ़ती मौतों पर चिन्तन

 - World News in Hindi

मंगलवार को पुष्टि हुई कि पिछले वर्ष अपना काम करते हुए रिकॉर्ड 383 मानवीय कार्यकर्ताओं को मौत के मुँह में धकेल दिया गया. इसके बावजूद ग़ाज़ा में तैनात एक वरिष्ठ संयुक्त राष्ट्र कार्यकर्ता ने मानवीय समुदाय की ओर से यह संकल्प दोहराया कि हालात कितने भी कठिन क्यों न हों, वे हर जगह लोगों की जान बचाने व उनकी पीड़ा कम करने के लिए प्रतिबद्ध रहेंगे. संयुक्त राष्ट्र मानवीय सहायता समन्वय कार्यालय (OCHA) की प्रवक्ता ओल्गा चेरेवको ने, विश्व मानवतावादी दिवस पर ग़ाज़ा के युद्धग्रस्त क्षेत्र से यूएन न्यूज़ से बातचीत करते हुए बताया कि यहाँ मानवीय कार्यकर्ता “हर दिन, बिना रुके काम पर आते हैं.”ग़ाज़ा युद्ध को दो साल होने वाले हैं. ओल्गा चेरेवको ने अपने फ़लस्तीनी सहयोगियों की दृढ़ता की सराहना करते हुए कहा, “इनमें डॉक्टर, नर्सें और मानवीय कार्यकर्ता शामिल हैं, जिनका सब कुछ कई बार छिन चुका है, लेकिन इसके बावजूद वे लगातार डटे हुए हैं." Tweet URL

लाल रेखाएँ पारसंयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने दुनिया भर के मानवीय कार्यकर्ताओं के समर्थन में कहा, “मानवीय टीमें युद्ध, टकराव या आपदा से प्रभावित 30 करोड़ से अधिक लोगों की आख़िरी जीवनरेखा हैं.”उन्होंने चेतावनी दी कि उनकी जीवनरक्षक भूमिका के बावजूद वित्तीय कटौतियों का गम्भीर असर दुनिया के सबसे नाज़ुक और असुरक्षित लोगों पर पड़ रहा है. साथ ही, सहायता कर्मी लगातार हमलों के शिकार हो रहे हैं, और मानवीय मर्यादाओं की 'लाल रेखाएँ', इस भावना के साथ खुलेआम पार की जा रही हैं, इनके लिए किसी को कोई न्यायिक दंड नहीं मिलेगा."महासचिव ने कहा कि यह स्थिति तब है, जबकि ऐसे हमले अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के तहत प्रतिबंधित हैं. उन्होंने याद दिलाया कि सरकारों ने मानवीय कार्यकर्ताओं की सुरक्षा का वादा किया है, लेकिन “राजनैतिक इच्छाशक्ति और नैतिक साहस ग़ायब है." उन्होंने कहा, "मानवीय कार्यकर्ताओं का सम्मान व रक्षा होना चाहिए. उन्हें किसी भी हाल में निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए.”मदद नहीं कर पाने की बेबसीओल्गा चेरेवको ने, ग़ाज़ा के मध्य क्षेत्र डेयर अल-बलाह से मानवीय कार्य की चुनौतियों के बारे में बताते हुए कहा कि जीवनरक्षक मिशनों में देरी होने पर सहायता टीमें अक्सर निराशा का सामना करती हैं, क्योंकि इससे वे ज़रूरतमन्दों तक बड़े पैमाने पर मदद नहीं पहुँचा पातीं.उन्होंने कहा, “एक मानवीय कार्यकर्ता के रूप में, मैं ग़ाज़ा में कई बार ख़ुद को बेबस महसूस करती हूँ. मुझे मालूम है कि हम क्या कर सकते हैं, लेकिन जब हम ऐसा नहीं कर पाते, तो यह और भी कठिन हो जाता है - सिर्फ़ ग़ाज़ा में ही नहीं, बल्कि हर मानवीय संकट में."उन्होंने बताया, "हम बड़े पैमाने पर सहायता पहुँचाने में लगातार भारी बाधाओं का सामना कर रहे हैं. हमारे मिशनों में देरी होती है, कभी-कभी वे 12, 14 या 18 घंटे तक खिंच जाते हैं; और जो रास्ते हमें दिए जाते हैं, वे अक्सर ख़तरनाक, दुर्गम या फिर बिल्कुल पहुँच से बाहर होते हैं."हत्याओं में तेज़ उछालनवीनतम आँकड़े दिखाते हैं कि 2023 की तुलना में मानवीय कार्यकर्ताओं की मौतों में, 31 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जिसका मुख्य कारण ग़ाज़ा में जारी भीषण युद्ध है.में ग़ाज़ा पट्टी में 2024 में, 181 मानवीय कार्यकर्ताओं की मौत हुई और सूडान में 60 मानवीय कार्यकर्ताओं को मौत के मुँह में धकेल दिया गया. व्यापक स्तर पर देखें तो 2023 की तुलना में 2024 में 21 देशों में मानवीय कार्यकर्ताओं पर हमले बढ़े, जिनमें अधिकतर मामलों में हमलावर सरकारी पक्ष से जुड़े थे.चिन्ताजनक बात यह है कि इस वर्ष भी यह प्रवृत्ति धीमी पड़ने के कोई संकेत नहीं नज़र आ रहे हैं. सहायता कर्मी सुरक्षा डेटाबेस के अन्तरिम आँकड़ों के अनुसार, इस वर्ष 14 अगस्त 2025 तक ही, 265 मानवीय कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है.

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