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भारत-यूएन विकास कोष: ऐल सल्वाडोर में प्रारम्भिक साक्षरता की नींव को मज़बूती

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प्रारम्भिक साक्षरता को शैक्षणिक और आर्थिक सफलता की नींव माना जाता है. इसी को ध्यान में रखते हुए, भारत और संयुक्त राष्ट्र की साझेदारी में चल रहे विकास कोष से, ऐल सल्वाडोर में 67 हज़ार से अधिक पुस्तकें वितरित की गई हैं जिनसे साढ़े पाँच हज़ार से अधिक परिवारों और लगभग छह हज़ार बच्चों में, पढ़ने की आदत को प्रोत्साहन मिलने की आशा है. Tweet URL

भारत-यूएन विकास कोष की नवीनतम जानकारी में बताया गया है कि 74 नगरपालिकाओं में पुस्तकों के साथ-साथ उन्हें रखने के लिए 672 अलमारियाँ भी वितरित की गई हैं.साथ ही, समावेशी शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए ऑडियोबुक और ब्रेल सामग्री भी तैयार की गई है. यह पहल भारत-यूएन विकास साझेदारी कोष और यूनीसेफ़ के सहयोग के तहत की गई है.बचपन में घर पर पढ़ाई के लाभ लम्बे समय से साबित होते आए हैं. यह न सिर्फ़ बच्चों की संज्ञानात्मक क्षमता, भाषा कौशल, एकाग्रता और अनुशासन को बेहतर बनाती है, बल्कि उनकी कल्पनाशक्ति, रचनात्मकता और पढ़ने के प्रति आजीवन प्रेम को भी बढ़ावा देती है. यही कारण है कि प्रारम्भिक साक्षरता को शैक्षणिक और आर्थिक सफलता की नींव माना जाता है.बहुआयामी निर्धनताहालाँकि ऐल सल्वाडोर में प्राथमिक शिक्षा तक पहुँच लगभग सार्वभौमिक है, लेकिन वहाँ अनेक आयाम वाली ग़रीबी की दर 27 प्रतिशत है.चौंकाने वाली बात यह है कि 10 साल की उम्र के 53 प्रतिशत बच्चे, साधारण पाठ भी नहीं समझ पाते, और सबसे ग़रीब वर्ग के 20 प्रतिशत बच्चे पढ़ना-लिखना नहीं जानते.इसके अलावा, दूसरी कक्षा के 49 प्रतिशत और तीसरी कक्षा के 40 प्रतिशत छात्रों में पढ़ने की प्रवाह क्षमता की कमी है, जो समझ और विश्लेषण के लिए बेहद ज़रूरी है.घर पर पढ़ाई योजनाइस गम्भीर स्थिति से निपटने के लिए देश के शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय व यूनीसेफ़ ने मिलकर ‘लेयेन्दो एन कासा’ (घर पर पढ़ाई) परियोजना शुरू की.यह पहल जून 2023 में शुरू हुई थी, जिसके तहत 3 से 10 वर्ष के बच्चों और उनके परिवारों को पुस्तकों के विभिन्न प्रारूप और सहायक सामग्री उपलब्ध करवाई जाएंगी, विशेष रूप से देश के सबसे ग़रीब इलाक़ों में. UNICEF/Tapash Paul इस परियोजना को भारत-यूएन विकास साझेदार कोष से वित्तीय सहायता दी जा रही है.इस परियोजना का लक्ष्य 74 कमज़ोर नगरपालिकाओं के 84 स्कूलों के 400 शिक्षकों और 6 हज़ार से अधिक बच्चों तक पहुँचना है.यह योजना केवल बुनियादी पढ़ने-लिखने के कौशल तक सीमित नहीं है. राष्ट्रीय पाठन योजना के तहत, देश के साहित्यकारों के कार्यों का सम्पादन और वितरण किया जाएगा, ताकि बच्चों को अपनी सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ने का अवसर मिले.दक्षिण-दक्षिण सहयोग के उदाहरण के रूप में, यह कोष पड़ोसी देश निकारागुआ के साथ अनुभव साझा करने के लिए भी वित्त उपलब्ध करा रहा है, ताकि विकलांग बच्चों में पढ़ने-लिखने के कौशल को और बेहतर बनाया जा सके.

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